आंदोलन खत्म, पर आसान नहीं BJP की राह: दिल्ली सीमा पर गुजारे वक्त के प्रभाव से इतनी जल्दी नहीं निकलेंगे किसान, कैप्टन के सहारे दांव
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सुनील राणा/जालंधर22 मिनट पहले
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भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने भले ही सियासी हितों के लिए दिल्ली की सीमाओं पर किसानों की घर वापसी करवाने के लिए सभी मांगें मान ली हैं। इसके बावजूद पंजाब के सियासी समीकरण इशारा कर रहे हैं कि आंदोलन खत्म होने के बाद भी BJP की राह आसान नहीं है।
किसान आंदोलन में पंजाब के सबसे बड़े वोट बैंक किसानों ने एक साल से ज्यादा दिल्ली सीमा पर दुर्दिन देखे हैं। तन और मन पर सरकारी उत्पीड़न झेला है। ऐसे में उसका असर किसान वोट बैंक के दिलो-दिमाग से निकाल पाना इतना आसान नहीं होगा।
कृषि कानून वापस लेने और किसानों की सारी मांगें मान लेने के पीछे BJP की मंशा साफ दिखती है। पंजाब में अगले महीने नए साल में विधानसभा चुनाव का ऐलान होने वाला है और भाजपा कृषि कानूनों को रद्द करने और किसानों की सभी मांगें मानकर उसका लाभ चुनाव में लेना चाहती है। पंजाब की सियासत में भाजपा अपने दम पर एंट्री कर अपना जनाधार बनाने की फिराक में है। हालांकि किसान इतनी जल्दी उस मानसिक और शारीरिक यंत्रणा से बाहर नहीं निकलेंगे।
कैप्टन के सहारे वैतरणी पार लगाने की कवायद
पंजाब में भाजपा अपनी एंट्री कर अपनी वैतरणी पार लगाने के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह का सहारा ले रही है। कैप्टन ही ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने मुख्यमंत्री रहते किसानों का पूरा समर्थन ही नहीं किया बल्कि पंजाब से दिल्ली की सीमाओं तक किसानों को पहुंचाने में भी मदद की। पंजाब में केंद्र सरकार के अधीन आते टोल प्लाजा हों या रेलवे ट्रैक जहां भी किसानों ने कृषि कानूनों के विरोध में पक्का धरना लगाया उन्हें वहां से उठाने में कैप्टन ने अपने शासनकाल में केंद्र की कोई मदद नहीं की। यही वजह है कि राज्य में टोल प्लाजा अब भी बंद हैं। ट्रेनें भी महीनों तक बंद रहने पर एक बार तो रेलवे ने पंजाब में ट्रेनें चलाने से मना कर दिया था। फसली सीजन और कोयले सहित कई वस्तुओं की सप्लाई प्रभावित होने पर राज्य सरकार के निर्विघ्न रेलवे संचालन के आश्वासन पर मालगाड़ियों को शुरू किया गया था।
अमरिंदर की नई पार्टी से बने नए समीकरण
अब कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस से अलग हो गए हैं और उन्होंने पंजाब में अपनी नई पार्टी बना ली है। ऐसे में भाजपा अब पंजाब में कैप्टन का फायदा उठाने की फिराक में है। कैप्टन के साथ समझौता कर चुनाव में कूदने के लिए कई दौर की बातचीत हो चुकी है। अब पंजाब में भाजपा और कैप्टन पंजाब अन्य असंतुष्टों के साथ मिलकर सीटों के बंटवारे पर सहमति बनाने पर जुट गए हैं। इस समीकरण में कैप्टन ही ऐसे शख्स हैं जिन्होंने कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री रहते आंदोलन को खुलकर समर्थन दिया। मुख्यमंत्री पद और कांग्रेस छोड़ने के बाद भाजपा के पाले में जाकर कृषि कानूनों को रद्द करवाने में भी उनकी अहम भूमिका रही है। अब भाजपा चुनाव में कैप्टन की इस पैठ को एनकैश करने कै चक्कर में है।
भाजपा शहर और ग्रामीण क्षेत्र संभालेंगे कैप्टन
अलग पार्टी बनाने के बाद भारतीय जनता पार्टी और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच अंदरखाते समझौता हुआ है। उस समझौते के अनुसार कैप्टन ग्रामीण क्षेत्रों पर फोकस करेंगे। भाजपा शहरी क्षेत्रों में आधार खोजेगी। यह बिल्कुल वैसे ही होगा जैसा BJP का अकालियों के साथ समझौते में था। अकाली दल से समझौते के दौरान भी BJP के पास शहरी क्षेत्रों की सीटें ही थीं। ग्रामीण क्षेत्र की सभी सीटें अकाली दल के कंट्रोल में थीं। ऐसा इसलिए भी किया जा रहा है क्योंकि किसान आंदोलन गांवों का था और ग्रामीण क्षेत्रों से ही चला था। पंजाब के सबसे बड़े वोट बैंक किसानों का आंदोलन में कैप्टन ने पूरा साथ दिया है। प्लानिंग यही है कि चुनावों में कैप्टन ही इस वोट बैंक को आसानी से साध सकेंगे।
किसानों के दिलो-दिमाग में मोदी की छवि अहंकारी राजा वाली
खेती के तीन काले कानून केंद्र सरकार ने रद कर दिए, किसानों पर दर्ज मामले भी वापस ले लिए लेकिन एक साल सिंघु बॉर्डर पर बैठने के रंज ने मोदी की छवि किसानों के दिलो-दिमाग में अहंकारी राजा वाली बना दी है। सिंघु बार्डर से लौट रहे किसानों पर सबसे पहला शब्द ही यही होता है कि उन्होंने अहंकारी राजा का सिर झुका दिया है। इसके बारे में यह कहा जाता था कि वह जो फैसला एक बार ले लेता है उसे वापस नहीं लेता, लेकिन किसानों ने अहंकारी नेता का सिर भी झुकाया और उसका फैसला भी रद करवाया। यह ठीक है कि भाजपा किसानों के हक में लिए गए फैसलों को पंजाब में एनकैश करना चाह रही हा लेकिन शायद इसकी टाइमिंग गलत हो गई है। सरकार फैसला लेने में थोड़ा लेट हो गई है। यही फैसला यदि पहले लिया होता तो अब तक पंजाब में भाजपा का आधार बन चुका होता।
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