अफगानिस्तान में क्यों कहर बरपा रहा है ISIS-K, समझें कैसे तालिबान से भी खतरनाक

अफगानिस्तान में क्यों कहर बरपा रहा है ISIS-K, समझें कैसे तालिबान से भी खतरनाक

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इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (ISKP) ने काबुल हवाई अड्डे पर हुए आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी ली है। इस बम धमाके में अमेरिकी सैनिक और अफगानिस्तान छोड़ रहे लगभग 60 लोगों की जान चली गई और 100 लोग घायल हो गए। ISIS-K ने बताया है कि उनका हमलावर काबुल हवाई अड्डे के पास बारां कैंप के पास पहुंचने में कामयाब रहा था जहां अमेरिकी सैनिक और उनके सहयोगी बड़ी मात्रा में मौजूद थे वहां जाकर हमलावर में विस्फोट के जरिए खुद को उड़ा दिया। 

रिपोर्ट्स में कहा गया है कि इस्लामिक स्टेट के स्थानीय सहयोगी दल आईएसआईएस-के ने लंबे समय से अमेरिकी कर्मियों पर हमले की योजना बनाई थी। बता दें कि यह दल पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सक्रिय है। अफगानिस्तान के सभी जिहादी और चरमपंथी संगठनों में यह दल बेहद हिंसक माना जाता है। यह संगठन पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों देशों के लोगों की भर्ती करता है।

इस संगठन में खासकर उन लोगों को शामिल किया जाता है जो तालिबान छोड़कर आते हैं और यह समझते हैं कि उनका संगठन अब उतना कट्टर नहीं रह गया है। यह संगठन इस्लामिक स्टेट के वैश्विक नेटवर्क का हिस्सा है।

क्या है ISIS-K?

ISIS-K का नाम पूर्वोत्तर ईरान, दक्षिणी तुर्कमेनिस्तान और उत्तरी अफगानिस्तान में स्थित एक पुरानी जगह के नाम पर रखा गया है। इसे पहली बार 2014 के आखिर में पूर्वी अफगानिस्तान में देखा गया था। यह बहुत ही जल्द अपनी क्रूरता के लिए जाना जाने लगा.  इस्लामी उग्रवाद के कुछ विशेषज्ञ बताते हैं कि जब पाकिस्तान सुरक्षा बलों ने तालिबान के कुछ लोगों पिर कार्रवाई की थी तो वे अफगानिस्तान भाग गए और उन्होंने इसकी स्थापना की थी।

अमेरिकी खुफिया अधिकारियों ने पहले सीएनएन को बताया था कि आईएसआईएस-के सदस्यता में “सीरिया के अनुभवी जिहादियों और अन्य विदेशी आतंकवादी लड़ाकों की एक छोटी संख्या” शामिल है। अमेरिका ने अफगानिस्तान में टॉप कार्यकर्ताओं में से 10 से 15 की पहचान की थी।

ये कहा रहते हैं?

यह आतंकी संगठन हाल ही के सालों में विशेष रूप से अफगानिस्तान के नंगहर और कुनार पांतों में देखा गया था। ISIS-K ने यहां अपने गुट स्थापित किए जिसके बाक इन्होंने 2016 से अफगान की राजधानी और उसके बाहर कई आत्मघाती हमले किए। ISIS-K शुरुआत में पाकिस्तान की सीमा पर कुछ इलाकों में सीमित था लेकिन फिर इसने जज्जान और फरयाब जैसे उत्तरी प्रांतों में एक प्रमुख मोर्चा स्थापित किया।

इसने अपनी स्थिति को कैसे मजबूत किया?

अमेरिकी खुफिया एजेंसी बताती हैं कि इसने अफगानिस्तान की राजनीतिक परिस्थिति और बढ़ती हिंसा का फायदा उठाया जिसके बाद इसने तालिबान सदस्यों की भर्ती करने की गति को बढ़ा दिया।

क्या ISIS-K तालिबान से जुड़े हुए हैं?

आईएसआईएस और तालिबान दोनों कट्टर सुन्नी इस्लामी आतंकवादी हैं लेकिन ये एक दूसरे के दोस्त नहीं बल्कि दुश्मन हैं और एक-दूसरे का विरोध करते हैं। ISIS-K के तालिबान के साथ बड़े मतभेद हैं। ISIS-K ने तालिबान पर जिहाद छोड़ने का और कतर के पॉश होटलों में शांति वार्ता मान लेने का इल्जाम लगाया।

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर इंटरनेशनल सिक्योरिटी एंड कोऑपरेशन के अनुसार, उनके मतभेद भी वैचारिक हैं। केंद्र ने कहा, “दोनों समूहों के बीच शत्रुता वैचारिक मतभेदों और संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा दोनों से उत्पन्न हुई। आईएस ने तालिबान पर एक सार्वभौमिक इस्लामी पंथ के बजाय एक संकीर्ण जातीय और राष्ट्रवादी आधार से अपनी वैधता खींचने का आरोप लगाया।”

एसोसिएटेड प्रेस ने रिपोर्ट में बताया है कि तालिबान ने हाल के सालों में अमेरिका के साथ बातचीत करने की मांग की, जिसका विरोध करते हुए कई लोग अधिक चरमपंथी इस्लामिक स्टेट में बदल गए।

हालांकि दोनों संगठनों के बीच हक्कानी नेटवर्क के जरिए एक कनेक्शन है। शोधकर्ता बताते हैं कि आईएसआईएस-के और हक्कानी नेटवर्क के बीच गहरे कनेक्शन हैं। इसी बुनियाद पर उनका तालिबान के साथ भी रिश्ता बन जाता है।

क्या है उनका टारगेट?

ISIS-K ने काबुल और अन्य शहरों में सरकार और विदेशी सैन्य ठिकानों के खिलाफ कई आत्मघाती बम विस्फोट किए हैं। विशेषज्ञों ने कहा है कि इनका उद्देश्य अधिक हिंसक और चरम उग्रवादी आंदोलन के रूप में अपनी साख स्थापित करना है।

गांव के बुजुर्गों की फांसी से लेकर रेड क्रॉस कार्यकर्ताओं की हत्याओं और भीड़ पर आत्मघाती हमलों तक इसे कई हमलों के लिए दोषी ठहराया गया है। इसके हालिया लक्ष्यों में काबुल में एक सूफी मस्जिद, ईंधन टैंकर और शिया बस यात्री शामिल थे। अमेरिकी अधिकारियों का यह भी मानना ​​​​है कि मुख्य रूप से शिया हजारा अल्पसंख्यक के लिए लड़कियों के स्कूल पर किया गया हमला भी ISIS-K का काम था।

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