अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से हलचल तेज: भारत के पास तालिबानी सत्ता के कड़वे अनुभव, चीन को लुभा रहे लिथियम तो शासन में दखल की फिराक में पाकिस्तान
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नई दिल्ली14 मिनट पहले
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19वीं सदी में अफगानिस्तान को लेकर रूसी और ब्रिटिश साम्राज्य में लड़ाई हुई थी। 20 वीं सदी में इसे लेकर अमेरिका और सोवियत संघ के बीच संघर्ष हुआ। रणनीतिक रूप से अहम इस देश पर आज जब तालिबान ने कब्जा जमा लिया है तो पड़ोसी देशों पाकिस्तान, चीन और भारत में हलचल तेज हो गई है।
पाकिस्तान के तालिबान से गहरे संबंध रहे हैं और इस पर आतंकी संगठनों का सपोर्ट करने का आरोप लगता रहा है। हालांकि, पाकिस्तानी सरकार ने इससे हमेशा इनकार किया है। पिछले हफ्ते जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा जमाया तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि अफगानों ने गुलामी की बेड़ियों को तोड़ दिया है।
तालिबानी शासन चलाने की चर्चा में पाकिस्तान भी शामिल
तालिबान इन दिनों शासन चलाने के तरीकों को लेकर चर्चा कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि कुछ पाकिस्तानी अधिकारी भी इसमें शामिल हैं। इस्लामाबाद में विदेश कार्यालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में ऐसा राजनीतिक समझौता चाहता है, जिससे इलाके में शांति और स्थिरता सुनिश्चित हो। लेकिन, अफगानिस्तान में अहम भूमिका तालिबानियों के हाथ में ही होगी।
अफगानिस्तान में अब तक चीन की बड़ी भूमिका नहीं रही
अफगानिस्तान में अब तक चीन की कोई बड़ी भागीदारी नहीं रही है, लेकिन पाकिस्तान के साथ उसका संबंध मजबूत रहा है। अफगानिस्तान खनिज संपदा से सम्पन्न देश है। इसमें लिथियम के बड़े भंडार शामिल हैं, जो इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए जरूरी कंपोनेंट है।
ETIM आतंकियों से शिनजियांग इलाके को खतरा
सिक्योरिटी के लिहाज से भी यह इलाका चीन के लिए अहम हो जाता है। चीन का कहना है कि वह पश्चिमी शिनजियांग इलाके को बीजिंग विरोधी पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) आतंकवादियों से बचाने के लिए सक्रिय हुआ है, जो अफगानिस्तान में शरण ले सकते हैं। NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, सिचुआन विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई स्टडी के प्रोफेसर झांग ली ने कहा कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ अफगानिस्तान का फायदा उठाने के बारे में सोच रहा होगा, लेकिन चीन के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता।
तालिबान को चीन से राजनयिक और आर्थिक समर्थन की संभावना
अफगानिस्तान को लेकर लग रहे आरोपों से चीन इनकार करता रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, नई दिल्ली में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में स्ट्रेटजिक स्टडी के प्रोफेसर ब्रह्म चेलानी ने इस मामले में चीन को लेकर अहम बात बताई। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान पर तालिबान के शासन के लिए जरूरी दो चीजें (राजनयिक मान्यता और आर्थिक सहायता) मुहैया कराने की संभावना ने चिंता बढ़ा दी है।
तालिबान के कार्यकाल की भारत के पास कड़वी यादें
भारत के पास 1996 से 2001 तक सत्ता में रहे तालिबान के कार्यकाल और इसके पाकिस्तान से संबंधों की कड़वी यादें हैं। 1999 में इंडियन एयरलाइंस के एक विमान का अपहरण कर लिया गया था, जिसे दक्षिणी अफगानिस्तान के कंधार में उतरा गया। भारत को यात्रियों की वापसी के बदले में तीन पाकिस्तानी आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा। साथ ही तालिबान ने हाईजैकर्स और रिहा किए गए कैदियों को पाकिस्तान भेज दिया।
अफगानिस्तान को लेकर भारत ने अभी तक पत्ते नहीं खोले
भारत के पास अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में से हर एक में डेवलपमेंट प्रोजेक्ट हैं, जिसमें काबुल में संसद भवन भी शामिल है। भारत ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। भारत ने तालिबान से संपर्क साधने की कोशिश की थी। एक स्तर की बातचीत भी हुई थी। डील क्या हुई, यह साफ नहीं हो पाया है।
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