संक्रमण पर बच्चे भारी: दिल्ली-पटना में वैक्सीन ट्रायल के लिए पहुंचे 55-60% बच्चों में पहले से एंटीबॉडी थी; अच्छी बात यह कि इन्हें कोरोना का पता ही नहीं चला
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- 55 60% Of Children Who Arrived For The Vaccine Trial In Delhi Patna Already Had Antibodies; The Good Thing Is That They Did Not Even Know About Corona.
नई दिल्ली3 घंटे पहलेलेखक: पवन कुमार
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55% से ज्यादा बच्चे संक्रमित होकर ठीक हो गए।
- एम्स दिल्ली और पटना के आंकड़े बता रहे- दूसरी लहर में 6 साल से कम उम्र के आधे से ज्यादा बच्चे संक्रमित हुए
- विशेषज्ञों ने कहा… यह बड़ा संकेत कि बच्चों को शायद टीके की जरूरत न पड़े
कोरोना की दूसरी लहर में 6 साल से छोटे बच्चों को संक्रमण तो हुआ, पर वे बीमार नहीं पड़े। यह बात दिल्ली एम्स और पटना एम्स में जुटाए जा रहे आंकड़ों से साबित होती है। इसके दो तथ्य हैं। पहला- एम्स द्वारा जुटाए जा रहे आंकड़ों और हालिया सीरो सर्वे के आधार पर वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि दूसरी लहर के दौरान शहरों में आधे से ज्यादा बच्चे संक्रमित हुए। दूसरा- इतनी ज्यादा संख्या में संक्रमित होने के बावजूद छोटे बच्चे बीमार नहीं पड़े, इसलिए संभव है कि उन्हें टीका लगाने की भी जरूरत ही न पड़े।
दिल्ली एम्स और पटना एम्स में 2 से 6 साल तक के बच्चों पर कोवैक्सीन के ट्रायल चल रहे हैं। ट्रायल से पहले एंटीबॉडी जांची जाती है, ताकि पता चल सके कि बच्चे कोरोना संक्रमित तो नहीं हुए हैं। दरअसल, ट्रायल में उन्हें ही शामिल किया जा रहा है, जिन्हें कभी संक्रमण नहीं हुआ है। एम्स में ट्रायल से पहले बच्चों की स्क्रीनिंग की गई, जिसके नतीजे देख वैज्ञानिक भी चौंक रहे हैं।
दिल्ली में ट्रायल के लिए अभी तक जितने भी बच्चे पहुंचे, उनमें से 55% में एंटीबॉडी पाई गई। एंटीबॉडी कोरोना संक्रमित होने के बाद बनती है। इसी तरह पटना में 60% से ज्यादा बच्चों में एंटीबॉडी पाई गई। खास बात यह है कि इन बच्चों में कभी कोरोना के लक्षण नहीं दिखे थे। इनके माता-पिता से जब पिछली मेडिकल कंडिशन की जानकारी जुटाई तो सामने आया कि ये बच्चे बीमार नहीं हुए थे।
यही बात वैज्ञानिकों को नई उम्मीद दे रही है। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में कम्यूनिटी मेडिसन विभाग के प्रमुख डॉ. जुगल किशोर बताते हैं कि- “जब घर में किसी को संक्रमण होता है तो परिवार के दूसरे सदस्य बमुश्किल संक्रमण से बच पाते हैं। 55% से ज्यादा बच्चे संक्रमित होकर ठीक हो गए। इसलिए हमें इस बात पर चर्चा करनी चाहिए कि छोटे बच्चों को वैक्सीन लगवानी भी चाहिए या नहीं। जब वे बीमार नहीं हो रहे तो टीके की जरूरत क्या है।’
एम्स के ट्रायल और राज्यों के ताजा सीरो सर्वे दर्शा रहे- 50% से ज्यादा आबादी संक्रमित होकर ठीक हो चुकी, सरकारी रिकॉर्ड में संक्रमित आबादी सिर्फ 2.4%
दूसरी लहर के दौरान डब्ल्यूएचओ के सहयोग से एम्स दिल्ली, गोरखपुर, अगरतला, भुुवनेश्वर और पुड्डुचेरी में सीरो सर्वे हुए। एक सर्वे सेंटर पर 2-2 हजार सैंपल शहरी व ग्रामीण इलाकों से जुटाए गए। इनमें सामने आया कि 52.7% बच्चे और 60% से ज्यादा वयस्कों में एंटीबॉडी पाई गई। यह स्थिति मार्च की थी, जिसके नतीजे अब सामने आए हैं।
10-17 साल तक के बच्चे ज्यादा संक्रमित
1 से 4 वर्ष 42.4% 5 से 9 वर्ष 43.8% 10 से 17 वर्ष 60.3%
- नतीजे के मुताबिक, 53% लड़कों, 58.6% लड़कियों में एंटीबॉडी मिली, यानी वे संक्रमित हो चुके हैं।
एक्सपर्ट व्यू…
यह भी समझ लें कि अगर तीसरी लहर आई, तो भी बच्चे सुरक्षित
- “संक्रमण की तीसरी लहर आती है तो भी यह नहीं कह सकते कि बच्चे बीमार पड़ेंगे। वे सुरक्षित ही रहेंगे। क्योंकि, बच्चों में लक्षण नहीं दिख रहे और वैक्सीन गंभीर बीमार होने से बचाती है, इसलिए वर्तमान परिस्थितियों को देखकर लगता है कि बच्चों को वैक्सीन की जरूरत नहीं पड़ेगी। हालांकि, वैक्सीन पर ट्रायल भविष्य के लिए जरूरी है।’ – प्रो. संजय राय, एम्स दिल्ली
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