लोक देवता गोगा पीर की जयंती आज: सांपों के देवता के रूप में होती है जाहरवीर की पूजा-अर्चना; कोरोना के कारण नहीं मिली मेले की परमीशन, ऑनलाइन दर्शन कर सकते हैं श्रद्धालु
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हिसार2 घंटे पहले
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हनुमानगढ़ स्थित गोगामेड़ी मंदिर।
राजस्थान के लोक देवता जाहरवीर गोगा पीर की आज जयंती है। हर साल भादौ महीने की नवमीं को इनकी जयंती मनाई जाती है और इस मौके पर हनुमानगढ़ जिले में स्थित गोगामेड़ी मंदिर में पूरे महीने मेला लगता है। लेकिन इस बार कोरोना महामारी के कारण मेला लगाने की परमीशन नहीं मिली। राजस्थान देवस्थान विभाग के संयुक्त शासन सचिव अजय सिंह राठौड़ ने इस संबंध में आदेश जारी किए थे।
जाहरवीर गोगा वीर जी।
मेला हर साल 22 अगस्त से 20 सितम्बर तक आयोजित किया जाता है। इस मेले में हर साल हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार व अन्य राज्यों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने और मन्नत मांगने के लिए गोगामेड़ी मंदिर में आते हैं। लेकिन इस बार मंदिर में कोई आयोजन नहीं हो रहा है। प्रशासन ने मंदिर के चारों ओर बैरिकेड लगवा रखे हैं और अतिरिक्त पुलिस बल भी तैनात किया है।
वहीं श्रद्धालुओं की भावनाओं का ख्याल रखते हुए देवस्थान विभाग ने गोगाजी के ऑनलाइन दर्शन का प्रबंध किया है। इसके लिए श्रद्धालु गोगाजी महाराज मंदिर की अधिकारिक वेबसाइट www.gogamedi.org पर क्लिक करने पर गोगाजी के लाइव दर्शन कर सकते हैं। बता दें कि हर साल लगने वाला यह मेला लाखों लोगों के लिए रोजगार का एक बड़ा जरिया भी है। लेकिन मेला रद्द होने से रोजगार छिन गया है।
मंदिर के अंदर का एक दृश्य।
कई नामों से पुकारा जाता है
वीर गोगाजी गुरुगोरखनाथ के परमशिष्य थे। चौहानवीर गोगाजी का जन्म विक्रम संवत 1003 (946 ईसवीं) में चुरू जिले के ददरेवा गांव में हुआ था। जयपुर से लगभग 250 किमी दूर स्थित सादलपुर के पास दत्तखेड़ा (ददरेवा) में गोगादेवजी का जन्म स्थान है। दत्तखेड़ा चुरू के तहत आता है। लोग उन्हें गोगाजी, गुग्गावीर, जाहर वीर, राजा मण्डलिक और जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। राजस्थान के 6 सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है।
सांपों के देवता के रूप में पूजे जाते हैं
लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार, गोगाजी को सांपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। गोगादेव का विवाह कोलुमण्ड की राजकुमारी केलमदे के साथ होना तय हुआ था, किन्तु विवाह होने से पहले ही केलमदे को एक सांप ने डस लिया। इससे गोगाजी कुपित हो गए और मंत्र पढ़ने लगे। मंत्र की शक्ति से नाग तेल की कढ़ाई में आकर मरने लगे। तब नागों के राजा ने आकर गोगाजी से माफी मांगी तथा केलमदे का जहर चूस लिया। इस पर गोगाजी शांत हो गए। तब से इन्हें सांपों के देवता के रूप में भी पूजा जाने लगा।
जाहरवीर गोगा जी का जन्मस्थान।
अलग-अलग नाम से पूजते हैं हिंदू और मुस्लिम
गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकड़ी पर सर्प मूर्ति उकेरी जाती है। लोक धारणा है कि सर्पदंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेड़ी तक लाया जाए तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है। हिंदू इन्हें गोगा वीर तथा मुसलमान इन्हें गोगा पीर कहते हैं।
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