मेजर ध्यानचंद के बेटे से बातचीत: अशोक ध्यानचंद बोले- पिता के नाम पर खेल रत्न अवॉर्ड देने से तसल्ली मिली, लेकिन उनका सच्चा सम्मान भारत रत्न ही होगा
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झांसी2 घंटे पहले
1928 में एम्सटर्डम ओलिंपिक में ध्यानचंद ने सबसे ज्यादा 14 गोल किए। वहीं से उन्हें हॉकी के जादूगर का खिताब मिला।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवॉर्ड कर दिया है। पीएम मोदी ने लिखा कि ये अवॉर्ड हमारे देश की जनता की भावनाओं का सम्मान करेगा। प्रधानमंत्री के इस फैसले की खबर लगते ही झांसी में रहने वाले मेजर ध्यानचंद के परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई।
ध्यानचंद के बेटे और पूर्व ओलंपियन अशोक ध्यानचंद ने इस फैसले पर खुशी जाहिर की है। हालांकि, अशोक ने यह भी कहा कि दद्दा ध्यानचंद को अभी तक भारत रत्न न दिए जाने का उन्हें मलाल है। पढ़ें, अशोक ध्यानचंद से भास्कर की विशेष बातचीत…
सवाल: मेजर ध्यानचंद के नाम पर खेल रत्न, कैसा लग रहा है?
जवाब: राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार अब मेजर ध्यानचंद के नाम से दिया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह फैसला खेल क्षेत्र के लिए एक गौरवशाली कदम है। यह हमारे परिवार के लिए सम्मान की बात है। हॉकी के लिए दद्दा का योगदान पूरा देश अब एक नई पहचान के साथ याद करेगा।
सवाल: एक खिलाड़ी के नाम पर खेल अवॉर्ड किस नजरिए से देखते हैं?
जवाब: खेल अवॉर्ड का नाम खिलाड़ी के नाम से ही होना चाहिए, फिर चाहे वो कोई भी खिलाड़ी हो। जैसे किसी काम को शुरू करने से पहले भगवान श्री गणेशजी का नाम आता है, वैसे ही खेलों में सबसे पहले ध्यानचंद जी का नाम लिया जाता है।
ध्यानचंद के खेल की बदौलत ही भारत ने 1928, 1932 और 1936 के ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीता था।
सवाल: क्या मेजर ध्यानचंद के लिए भारत रत्न की मांग करेंगे?
जवाब: झांसी की जनता ही नहीं बल्कि देश भर के हॉकी प्रेमियों की हमेशा से मांग रही है कि मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न जरूर मिले। देश को उन्होंने हॉकी और खेल के क्षेत्र में अलग पहचान दिलवाई। आज 41 साल बाद हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ओलिंपिक में मेडल जीतकर फिर से जीवित हो उठा है। पुरुष टीम के अलावा महिला टीम ने भी जोरदार प्रदर्शन किया और एक बार फिर से इसे जिंदा कर दिया है।
मेजर ध्यानचंद के घर की अलमारियों और दीवारों पर उनकी यादें सजी हैं।
अशोक के दोस्तों ने भी भारत रत्न देने की मांग की
मेजर ध्यानचंद के परिवार से जुड़े और अशोक ध्यानचंद के मित्र और पूर्व हॉकी खिलाड़ी इशरत हुसैन बताते हैं कि भारत रत्न देना भारत सरकार का काम है। अभी तक मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न सम्मान नहीं देने की क्या वजह है, यह तो सरकार ही जाने लेकिन एक खिलाड़ी होने के नाते हम चाहते हैं कि उन्हें भारत रत्न मिले। उन्होंने कहा कि सरकार इस बात पर जरूर गौर करेगी और मेरा ऐसा मानना है कि बहुत ही जल्द मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा होगी।
घर की दीवारों पर टंगी हैं मेजर ध्यानचंद की उपलब्धियां।
हॉकी के जादूगर कहे जाते हैं ध्यानचंद
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में हुआ था। भारत में यह दिन राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। ध्यानचंद ने सिर्फ 16 साल की उम्र में भारतीय सेना जॉइन कर ली थी। वे ड्यूटी के बाद चांद की रोशनी में हॉकी की प्रैक्टिस करते थे, इसलिए उन्हें ध्यानचंद कहा जाने लगा।
उनके खेल की बदौलत ही भारत ने 1928, 1932 और 1936 के ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीता था। 1928 में एम्सटर्डम ओलिंपिक में उन्होंने सबसे ज्यादा 14 गोल किए। तब एक स्थानीय अखबार ने लिखा, ‘यह हॉकी नहीं, जादू था और ध्यानचंद हॉकी के जादूगर हैं।’ तभी से उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा।
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