मालवा में ही रही पंजाब की ‘सरदारी’: 1995 में बेअंत सिंह की हत्या होने के बाद मालवा के नेता ही बनते रहे हैं मुख्यमंत्री, सूबे की 117 विधानसभा सीटों में से 69 इसी रीजन में
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चंडीगढ़एक घंटा पहले
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कांग्रेस पार्टी की ओर से रविवार शाम को सीएम पद के लिए चरणजीत सिंह चन्नी के नाम के ऐलान के साथ ही तय हो गया कि पंजाब में मुख्यमंत्री की कुर्सी एक बार फिर मालवा रीजन में ही रहेगी। दलित समुदाय से आने वाले चरणजीत सिंह चन्नी रोपड़ जिले की चमकौर साहिब विधानसभा सीट से एमएलए हैं। यह इलाका ईस्ट मालवा में आता है। 12 जून 1966 को हरियाणा को भाषा के आधार पर अलग राज्य का दर्जा दिए जाने के बाद पंजाब की सियासत पर ज्यादातर मलवइयों का ही राज रहा है। सामान्य बोलचाल में पंजाब को तीन इलाकों-माझा, मालवा और दोआबा- में बांटा जाता है। इनमें मालवा में 69, दोआबा में 23 और माझा में 25 विधानसभा सीटें आती हैं।
प्रदेश पर मलवइयों का राज
पंजाब में सीएम की कुर्सी आखिरी मर्तबा 25 फरवरी 1992 को मालवा से बाहर गई थी जब जालंधर कैंटोनमेंट के विधायक बेअंत सिंह मुख्यमंत्री बने थे। बेअंत सिंह दोआबा रीजन से आते थे। 31 अगस्त 1995 को बम ब्लास्ट में बेअंत सिंह की हत्या होने के बाद कांग्रेस के हरचरण सिंह बराड़ सीएम बने जो मालवा में पड़ने वाली मुक्तसर सीट से विधायक थे। उसके बाद सीएम की कुर्सी कभी मालवा से बाहर नहीं गई।
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पंजाब में 12 लोग ले चुके 16 बार CM पद की शपथ
भाषा के आधार पर वर्ष 1966 में हरियाणा के अलग राज्य बनने के बाद पंजाब में अब तक 12 लोगों को 16 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई जा चुकी है। इनमें ज्ञानी गुरमुख सिंह, गुरनाम सिंह, लक्षमण सिंह गिल, प्रकाश सिंह बादल, ज्ञानी जैल सिंह, दरबारा सिंह, सुरजीत सिंह बरनाला, बेअंत सिंह, हरचरण सिंह बराड़, राजिंदर कौर भट्ठल और अमरिंदर सिंह शामिल हैं। चरणजीत सिंह चन्नी 13वें शख्स होंगे जो मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। वह पंजाब के 17वें सीएम होंगे।
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1966 के बाद पंजाब में 6 बार लगा राष्ट्रपति शासन
बॉर्डर स्टेट पंजाब में वर्ष 1966 के बाद अभी तक 6 बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है। आतंकवाद की वजह से सूबे का बिगड़ा माहौल और राजनीतिक अस्थिरता इसकी बड़ी वजह रही। 1966 के बाद पंजाब में पहली बार राष्ट्रपति शासन 23 अगस्त 1968 से 17 फरवरी 1969 तक रहा। उसके बाद 14 जून 1971 से 17 मार्च 1972, 30 अप्रैल 1977 से 20 जून 1977, 17 फरवरी 1980 से 6 जून 1980, 6 अक्टूबर 1983 से 29 सितंबर 1985 और 11 जून 1987 से 25 फरवरी 1992 तक राष्ट्रपति शासन रहा। उसके बाद राजनीतिक स्थिरता और माहाैल सुधरने की वजह से राष्ट्रपति शासन की जरूरत महसूस नहीं हुई।
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