मल्लेश्वरम का सरकारी स्कूल बना मिसाल: सरकारी स्कूल के बच्चे कोडिंग में इंजीनियर्स जैसे हुनरमंद, हाईटेक लैब में काम करते हैं, इसलिए स्कूल सैटेलाइट बनाने के लिए चुना गया

मल्लेश्वरम का सरकारी स्कूल बना मिसाल: सरकारी स्कूल के बच्चे कोडिंग में इंजीनियर्स जैसे हुनरमंद, हाईटेक लैब में काम करते हैं, इसलिए स्कूल सैटेलाइट बनाने के लिए चुना गया

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बेंगलुरू3 मिनट पहलेलेखक: मनोरमा सिंह

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मल्लेश्वरम का सरकारी स्कूल बना मिसाल: सरकारी स्कूल के बच्चे कोडिंग में इंजीनियर्स जैसे हुनरमंद, हाईटेक लैब में काम करते हैं, इसलिए स्कूल सैटेलाइट बनाने के लिए चुना गया

बेंगलुरू का मल्लेश्वरम सरकारी बॉयज हाई स्कूल एक मिसाल है, इसे 75 सैटेलाइट बनाने के लिए चुना गया है।

बेंगलुरू का मल्लेश्वरम सरकारी बॉयज हाई स्कूल एक मिसाल है, इसीलिए इसे 75 सैटेलाइट बनाने के लिए चुना गया है। ये सैटेलाइट अगले साल आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर लॉन्च होंगे। स्कूल प्रिसिंपल लीला जीपी इसकी सबसे बड़ी वजह यहां की हाईटेक अटल टिंकरिंग लैब को बताती हैं। कर्नाटक में इस तरह की लैब वाले सिर्फ तीन स्कूल हैं।

लीला बताती हैं कि राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में यहां के छात्रों के कुछ प्रोजेक्ट टॉप-50 में चुने गए थे। इसी वजह से स्कूल को केंद्र सरकार और नीति आयोग की ओर से अटल टिंकरिंग लैब मिली थी। यह लैब सभी बच्चों के लिए है, चाहे वो बच्चा किसी दूसरे स्कूल का क्यों न हो। यहां लगातार प्रयोग चलते हैं। लॉकडाउन के दौरान कुछ परेशानियां हुई थीं, लेकिन अब बच्चे यहां आकर कई तरह के वैज्ञानिक प्रयोगों में भाग लेते हैं। सीखते हैं। जूनियर्स को सिखाते भी हैं। इसमें आईटी कंपनी डेल तकनीकी मदद कर रही है। सॉफ्टवेयर भी दे रही है। इंडियन टेक्नोलॉजिकल कांग्रेस एसोसिएशन और इसरो लगातार स्कूल के संपर्क में हैं।

स्कूल के अच्छे प्रदर्शन में शिक्षणा फाउंडेशन और सीएन अश्वत्नारायण फाउंडेशन जैसे एनजीओ का भी अहम योगदान है। इन्होंने लॉकडाउन के दौरान स्कूल के 1000 गरीब बच्चों को उच्चक्षमता वाले टैब दिए। शिक्षणा फाउंडेशन के नवीन बताते हैं कि जल्द ही स्कूल के हर पांचवें छात्र को हाई एंड लैपटॉप दिया जाएगा। फाउंडेशन के चेतन जैसे सदस्य सीधे छात्रों से जुड़कर उनको गाइड करते हैं। लैब इंचार्ज मैत्रा एसपी वो शख्स हैं, जो इस प्रोजेक्ट के चलते सालभर व्यस्त रहने वाली हैं। वे कहती हैं लोग यहां आकर बच्चों की प्रतिभा देख सकते हैं। खासतौर पर कोडिंग के संदर्भ में। यहां बच्चों में कोडिंग की समझ इंजीनियर्स जैसे है।

सैटेलाइट प्रोजेक्ट में शामिल 10वीं कक्षा का अमित झारखंड के बोकारो से है। अमित की मां घरों में काम करती हैं और पिता मजदूरी। लेकिन, अमित इसी सरकारी स्कूल में रहते हुए कोडिंग में पारंगत हो चुका है। बढ़िया अंग्रेजी बोलता है। इसी तरह छात्र शिव कुमार लगातार साइंस प्रोजेक्ट से जुड़ा है। ये बच्चे कंप्यूटर इंजीनियर बनने की तैयारी अभी से शुरू कर चुके हैं।

इस साल लड़कों के इस स्कूल में लड़कियों को भी एडमिशन दिया जा रहा है
बेहतरीन शिक्षा सभी का हक है, इसको ध्यान में रखते हुए लड़कों के इस स्कूल में अब लड़कियों को भी प्रवेश दिया जा रहा है। सैटेलाइट प्रोजेक्ट पर 8वीं से 10वीं के बच्चे काम करेंगे। प्रोजेक्ट में लड़कियों को भी शामिल किया जाएगा।

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