भास्कर ओरिजीनल: संक्रमण पर काबू के लिए 5% जीनोम, सीक्वेंसिंग जरूरी, देश में 0.10% हो रही, जीनोम सीक्वेंसिंग में पिछड़ा भारत, इसी से वैरिएंट पहचाना जाता है
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- To Control The Infection, 5% Of The Genome, Sequencing Is Necessary, 0.10% Is Happening In The Country, India Is Backward In Genome Sequencing, Due To Which The Variant Is Identified.
नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: अनिरुद्ध शर्मा
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भारत ने अब तक दुनिया के साथ सिर्फ 29,792 सैंपल की सीक्वेंसिंग शेयर की है, जो भारत में मिले कुल मामलों के सिर्फ 0.10% हैं।
काेरोना का संक्रमण कितनी तेजी से फैलेगा, यह उसके वैरिएंट पर निर्भर करता है। नया वैरिएंट कितनी तेजी से बदल रहा, देश के किन-किन हिस्सों में फैल रहा और कितना खतरनाक हो रहा, ये सबकुछ जानने में ही हमें दो महीने से ज्यादा वक्त लग रहा है।
यही कारण है कि डेल्टा वैरिएंट से दो-ढाई महीने पहले जो मौतें हुई थीं, उनकी पुष्टि अब हो रही है। जबकि दूसरी ओर, अमेरिका-ब्रिटेन जैसे देश सिर्फ दो हफ्ते में नए वैरिएंट की सभी जानकारियां दुनिया के साथ शेयर कर देते हैं, ताकि दूसरे देश नए वैरिएंट से सतर्क हो जाएं और उससे निपटने की तैयारियां शुरू कर दें। भारत में जीनोम सीक्वेंसिंग के नतीजे ही देरी से नहीं आ रहे, बल्कि सैंपल भी बहुत कम जुटाए जा रहे हैं।
इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत ने अब तक दुनिया के साथ सिर्फ 29,792 सैंपल की सीक्वेंसिंग शेयर की है, जो भारत में मिले कुल मामलों के सिर्फ 0.10% हैं, जबकि डब्ल्यूएचओ कहता है कि कम से कम 5% मामलों की सीक्वेंसिंग जरूरी है। ब्रिटेन ने 10% से ज्यादा सीक्वेंसिंग शेयर की है। चिंता की बात यह है कि कुल मरीजों के अनुपात में सीक्वेंसिंग के मामले में भारत दुनिया में 131वें स्थान पर है।
अभी यह स्थिति
रोजाना मरीजों के लिहाज से भारत अब भी दूसरा सबसे संक्रमित देश, लेकिन खतरनाक वैरिएंट का पता लगाने के एकमात्र उपाय जीनोम सीक्वेंसिंग में दुनिया में 131वें स्थान पर खिसका
यही बड़ी चिंता
भारत ने अब तक मात्र 29,792 सैंपल की सीक्वेंसिंग कर दुनिया के साथ शेयर की है। यह संख्या देश में दर्ज हो चुके 3 करोड़ से ज्यादा मरीजों के मुकाबले सिर्फ 0.10% है।
इसकी बड़ी वजह
भारत में जितनी कुल क्षमता है, उतनी अमेरिका में सिर्फ 10 लैब में; ब्रिटेन में 10.6% सैंपल की सीक्वेंसिंग हो चुकी, यह अनुपात डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइंस से दोगुना
ऑस्ट्रेलिया अव्वल, बांग्लादेश से भी पीछे चल रहा भारत
देश सीक्वेंसिंग
शेयरिंग ऑस्ट्रेलिया 59.4%
डेनमार्क 39.3%
फिनलैंड 12%
ब्रिटेन 10.6%
नॉर्वे 9.39%
जापान 6.68%
स्विट्जरलैंड 6.46%
स्वीडन 6.29%
अमेरिका 1.76%
बांग्लादेश 0.20%
श्रीलंका 0.19%
भारत 0.10%
भारत में जीनोम सीक्वेंसिंग की रिपोर्ट 2 महीने बाद आ रही, अमेरिका और ब्रिटेन में सिर्फ 2 हफ्ते लग रहे
भारत में डेल्टा वैरिएंट से दो माह पहले हुईं मौतों की पुष्टि अब हो रही, आखिर इतना समय क्यों लग रहा है?
सीक्वेंसिंग तो 15-20 दिन में पूरी कर ली जाती है, लेकिन यदि नया म्यूटेंट दिखता है तो उसकी वैज्ञानिक पुष्टि में 2 महीने से ज्यादा वक्त लग रहा है। म्यूटेट होते वैरिएंट का ट्रेंड देखने के लिए उसी जगह से दाे बार फिर सैंपल लिए जाते हैं।
सैंपलिंग कैसे होती है?
एनसीडीसी (नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल) को रिपोर्ट करने वाली जिला स्तरीय संस्था आईडीएसपी (इंटीग्रेटेड डिसीज सर्विलांस प्रोग्राम) सैंपल चुनती है। फिर लैब में सैंपल से वायरस आरएनए निकालकर जांचा जाता हैं। इसे डेटाबेस से मिलान करके देखा जाता है कि कोई नया वैरिएंट तो नहीं है। जहां से सैंपल लिए जाते हैं, वहां नजर रखी जाती है। इससे पता चलता है कि संक्रमण ज्यादा फैल रहा है या कम।
सीक्वेंसिंग कहां-कहां होती है?
देश में 300 सेंटीनल सेंटर हैं। वहां एकत्रित सैंपल देशभर की 28 सीक्वेंसिंग लैब में भेजे जाते हैं।
सीक्वेंसिंग किस रफ्तार से होती है?
नए म्यूटेंट की पहचान से लेकर उसके वैरिएंट ऑफ कंसर्न बनने तक काफी वक्त लगता है। एल्फा वैरिएंट के मामले में चार महीने का वक्त लगा था।
देश में सीक्वेंसिंग की कितनी क्षमता है?
शुरुआत में जीनोम सीक्वेंस करने की क्षमता 30 हजार प्रतिमाह थी। तब 10 लैब थीं। अब 28 लैब हैं। क्षमता भी इसी अनुपात में बढ़ी है।
देश में कितने वैरिएंट मिल चुके हैं?
अब तक 65 हजार सैंपल लिए गए। उनमें से 45 हजार का विश्लेषण हो चुका है। हालांकि 29,792 की सीक्वेेंसिंग ही बाकी देशों से शेयर की गई है। 100 से ज्यादा वैरिएंट मिले हैं। इनमें से अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा ही वैरिएंट ऑफ कंसर्न की श्रेणी में हैं।
भारत में कितनी जीनोम सीक्वेंसिंग का लक्ष्य है?
दिसंबर तक 5% जीनोम सीक्वेंसिंग का लक्ष्य है।
अमेरिका-ब्रिटेन जैसे देशों में कैसे काम किया जा रहा?
अमेरिका-ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर सीक्वेंसिंग हो रही है। भारत में जीनोम सीक्वेंसिंग की जितनी कुल क्षमता है, उतनी अमेरिका की 10-12 लैब में हैं। वहां ऐसी 100 से ज्यादा लैब हैं। अमेरिका-ब्रिटेन में सीक्वेंसिंग के जरिए नए वैरिएंट की पहचान सिर्फ दो हफ्ते में हो रही है। जबकि, भारत में दो महीने से ज्यादा लग रहे हैं।
- डॉ. रेणु स्वरूप, सचिव डीबीटी
- डॉ. सुजीत कुमार सिंह, एनसीडीसी के निदेशक
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