भास्कर एक्सप्लेनर: क्यों और कहां फेल हो गया इसरो का मिशन; जानिए क्या है क्रायोजेनिक स्टेज जिसमें गड़बड़ी आई

भास्कर एक्सप्लेनर: क्यों और कहां फेल हो गया इसरो का मिशन; जानिए क्या है क्रायोजेनिक स्टेज जिसमें गड़बड़ी आई

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3 मिनट पहले

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भास्कर एक्सप्लेनर: क्यों और कहां फेल हो गया इसरो का मिशन; जानिए क्या है क्रायोजेनिक स्टेज जिसमें गड़बड़ी आई

इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) को गुरुवार को बड़ा झटका लगा। अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट (EOS-03) यानी ‘आई इन द स्काय’ को लॉन्च करने का मिशन फेल हो गया। GISAT-1 अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट को लेकर जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) F10 रॉकेट ओडिशा के स्पेसपोर्ट से लॉन्च हुआ। दो स्टेज तक सबकुछ ठीक चला। क्रायोजेनिक स्टेज में गड़बड़ी आई और मिशन फेल हो गया। इसरो कुछ दिन बाद इसके दोबारा लॉन्च की तारीख घोषित कर सकता है।

आइए जानते हैं कि यह मिशन किस स्टेज में फेल हुआ और उसका मतलब क्या है?

सबसे पहले, रॉकेट लॉन्च के स्टेज कितने होते हैं?

दुनियाभर की स्पेस एजेंसियां रॉकेट लॉन्च को कई स्टेज में बांटती हैं। हर स्टेज में रॉकेट से एक हिस्सा अलग होता है और अगला हिस्सा डेस्टिनेशन के पास तक जाता है। कितना डिस्टेंस कवर करना है, इसके आधार पर स्पेस व्हीकल पांच स्टेज तक का हो सकता है। मोटे तौर पर तीन ही स्टेज होते हैं।

इसरो के मिशन दस्तावेज के मुताबिक ऐसे हुई गड़बड़ी-

  • पहला स्टेजः रॉकेट का यह सबसे भारी हिस्सा होता है। सबसे अधिक फ्यूल और ऑक्सीडाइजर टैंक्स इसमें ही इस्तेमाल होते हैं क्योंकि पृथ्वी की ग्रेविटी को चीरते हुए रॉकेट को ऊपर बढ़ना होता है। पहले स्टेज में रॉकेट का बड़ा हिस्सा ऊपर जाने के बाद अलग हो जाता है। यह समुद्र में या गैर-रिहायशी इलाकों में गिर जाता है। इस स्टेज में 2.6 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से 2 मिनट 30 सेकंड तक उड़ान भरनी थी। गुरुवार के लॉन्च में यह प्रोसेस सही रही।
  • दूसरा स्टेजः पहले स्टेज के अलग होने के बाद दूसरा हिस्से का इंजिन रफ्तार पकड़ता है। 3.8 किमी प्रति सेकंड से 5.1 किमी प्रति सेकंड तक की रफ्तार पकड़कर 2 मिनट 24 सेकंड उड़ान भरता है। इस दौरान पेलोड फेयरिंग सेप्रेशन शुरू हुआ। इसरो के अनुसार गुरुवार के मिशन यह प्रोसेस भी पूरी हो गई थी।
  • तीसरे स्टेजः दूसरे स्टेज के अलग होने के बाद क्रायो अपर स्टेज इग्निशन को ऑन होना था। इसे 14 मिनट तक 10 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से ऑर्बिट तक जाना था। पर क्रायोजेनिक इंजिन शुरू नहीं हुआ और यह मिशन फेल हो गया।

क्रायोजेनिक स्टेज क्या होती है?

  • लॉन्च व्हीकल की आखिरी स्टेज होती है- क्रायोजेनिक स्टेज। इसमें क्रायोजेनिक्स यानी शून्य डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर इंजिन शुरू होता है और सैटेलाइट या पेलोड को उसके निर्धारित ऑर्बिट तक लेकर जाता है। इसके प्रोडक्शन और मटेरियल्स के बिहेवियर की स्टडी -150 डिग्री सेल्सियस पर होती है।
  • इसरो के पूर्व चेयरमैन जी माधवन नायर ने कहा कि रॉकेट लॉन्च के दौरान क्रायोजेनिक स्टेज ही सबसे मुश्किल होती है। इसरो ने क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी में महारत हासिल की है। अब तक क्रायोजेनिक स्टेज के आठ लॉन्च हुए हैं। पहले में समस्या आई थी। उसके बाद के सभी लॉन्च सफल रहे थे। इस बार गड़बड़ कहां हो गई, यह देखन होगा। रूस और यूरोपीय देशों की स्पेस एजेंसियों का क्रायोजेनिक स्टेज पर फेल होने की रेंज 20% है। उसके मुकाबले इसरो का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा रहा है।
क्रायोजेनिक इंजिन के साथ सैटेलाइट को 36 हजार किमी ऊपर तक जाना था, पर उसमें गड़बड़ी की वजह से मिशन फेल हो गया। तब रॉकेट का ऊपरी हिस्सा अलग होकर भी सैटेलाइट को ऑर्बिट में स्थापित नहीं कर सका।

क्रायोजेनिक इंजिन के साथ सैटेलाइट को 36 हजार किमी ऊपर तक जाना था, पर उसमें गड़बड़ी की वजह से मिशन फेल हो गया। तब रॉकेट का ऊपरी हिस्सा अलग होकर भी सैटेलाइट को ऑर्बिट में स्थापित नहीं कर सका।

इसरो के इस मिशन का उद्देश्य क्या था?

  • इस मिशन में इसरो को अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट लॉन्च करना था। मिशन सफल होता तो इसके जरिए भारत के साथ-साथ चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर भी रियलटाइम निगरानी संभव हो जाती।
  • अंतरिक्ष विभाग के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने हाल ही में राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट (EOS-03) पूरे देश की रोज 4-5 तस्वीरें भेजेगा। इस सैटेलाइट की मदद से जलाशयों, फसलों, तूफान, बाढ़ और फॉरेस्ट कवर में होने वाले बदलावों की रियल-टाइम मॉनिटरिंग संभव होगी।
  • यह सैटेलाइट धरती से 36 हजार किमी ऊपर स्थापित होने के बाद एडवांस ‘आई इन द स्काय’, यानी आसमान में इसरो की आंख के तौर पर काम करेगा। यह सैटेलाइट पृथ्वी के रोटेशन के साथ सिंक होगा, जिससे ऐसा लगेगा कि यह एक जगह स्थिर है।
  • यह बड़े इलाके की रियल-टाइम इन्फॉर्मेशन देने में सक्षम है। यह बेहद खास है, क्योंकि अन्य रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट्स लोअर ऑर्बिट्स में हैं और वह नियमित इंटरवल के बाद एक स्पॉट पर लौटते हैं। इसके मुकाबले EOS-03 रोज चार-पांच बार देश की तस्वीर खींचेगा और विभिन्न एजेंसियों को मौसम व जलवायु परिवर्तन से संबंधित डेटा भेजेगा।

इसरो के लिए आगे क्या?

  • इसरो अगले पांच महीनों में चार और बड़े लॉन्च करने वाला है। सितंबर में इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) के साथ रडार इमेजिंग सैटेलाइट (Risat-1A या EOS-04) स्पेस में भेजेगा। यह दिन-रात बादलों के पार की तस्वीरें भी कैप्चर कर सकेगा। यह पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) से लॉन्च होगा। यह 1800 किलो वजनी सैटेलाइट देश के डिफेंस सिस्टम के लिए उपयोगी होगा। यह दिन-रात और किसी भी मौसमी परिस्थितियों में रियल-टाइम तस्वीरें भेजेगा।
  • इस साल के अंत तक स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) का डेब्यू लॉन्च भी हो सकता है। यह एक तीन-स्टेज वाला फुल-सॉलिड लॉन्च व्हीकल है जो 500 किलो वजन वाले पेलोड को पोलर ऑर्बिट में पृथ्वी की सतह से 500 किलोमीटर ऊपर और 300 किलोग्राम पेलोड को सन सिंक्रोनस पोलर ऑर्बिट में ले जा सकता है। इसरो नए विकसित लॉन्च सिस्टम का उपयोग ऑन-डिमांड सर्विसेज और छोटे उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए करेगा।

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