बीजेपी के अटल और लाल के बीच कल्याण को भुला पाना मुश्किल है

बीजेपी के अटल और लाल के बीच कल्याण को भुला पाना मुश्किल है

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डिजिटल डेस्क, लखनऊ। बीजेपी के मजबूत होने की बात होगी तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी का नाम कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। पर इसी फेहरिस्त में एक नाम और भी है। ये नाम है उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का। उत्तरप्रदेश की राजनीति में कल्याण सिंह सिर्फ एक अध्याय नहीं बल्कि एक तारीख हैं जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकेगा।

वो सीएम जिसने बीजेपी की नींव मजबूत कर दी

उत्तरप्रदेश में बीजेपी से कल्याण सिंह पहले मुख्यमंत्री थे। जो बड़े कारणों से हमेशा हमेशा याद किए जाते रहेंगे। एक मामला तो वो है जिसने पूरी यूपी की राजनीति ही बदल कर रख दी। कहना गलत नहीं होगा कि अगर कल्याण हिम्मत नहीं जुटाते तो बीजेपी का वर्चस्व पूरे यूपी में इस कदर दिखाई नहीं देता। बात 1991 से शुरू करते हैं। 90 की दशक की शुरूआत के साथ ही यूपी की राजनीति बदलने लगी। जून 1991 में बीजेपी की सरकार बनी। उत्तरप्रदेश में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री बनने का इतिहास कल्याण सिंह के नाम पर दर्ज हुआ। और फिर इतिहास बनता ही चला गया। कल्याण सिंह के मुख्यमंत्रितत्व काल में ही बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहा दिया गया। इस दिन को न सिर्फ उत्तरप्रदेश बल्कि पूरा देश नहीं  भूल सकता। हालांकि कल्याण सिंह ने इसका खामियाजा भुगता और मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। कुर्सी गई पर बीजेपी मजबूत हो गई। हालांकि कल्याण सिंह इसके बाद 1997 में दोबारा मुख्यमंत्री बने। और तकरीबन दो साल इस पद पर काबिज रहे।

रात साढ़े दस बजे कुर्सी छिनी, सुबह वापस मिली

ये दिलचस्प वाक्या भी कल्याण सिंह के साथ जुड़ा है। उनका दूसरा कार्यकाल भी उनके लिए बहुत आसान नहीं रहा। 21 फरवरी 1998 में कल्याण सिंह को राज्यपाल ने बर्खास्त कर दिया। तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी के फैसले ने सबको चौंकाया। राज्यपाल ने जगदंबिका पाल को रात साढ़े दस बजे मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाई। पाल कल्याण सिंह कैबिनेट में ही मंत्री थे। पर कांग्रेस से सांठ गांठ कर सीएम की कुर्सी पर काबिज होने का आरोप उन पर लगता रहा। राज्यपाल के इस फैसले के खिलाफ अटल बिहारी बाजपेयी ने मोर्चा खोल दिया। वो आमरण णनशन पर बैठ गए। मामला रात में ही हाईकोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने राज्यपाल क फैसले पर रोक लगा दी। जो कुर्सी रात में छिनी थी अटलजी के अनशन की बदौलत कल्याण सिंह को सुबह वापस मिल गई। 

भाजपा में बिगड़ी बात

बीजेपी के लिए कल्याण सिंह ने इतना कुछ किया। इसके बावजूद बीजेपी से उनके रिश्तों में तल्खी आ ही गई।  1999 में कुछ मतभेदों को चलते कल्याण सिंह ने बीजेपी छोड़ राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का गठन किया। इसके बाद साल 2002 उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव उन्होंने अपनी नई पार्टी से ही लड़ा पर खास कमाल नहीं कर पाए। सो 2004 में अटलजी के आग्रह पर दोबारा बीजेपी में वापसी की। पर वापसी के बाद उन्हें वो ताकत नहीं मिल पाई जिसके वो हकदार थे। इसके बाद फिर बीजेपी में आने जाने का सिलसिला जारी रहा। 

 

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