पाकिस्तान का हिंगलाज मंदिर जहां ‘पुनर्जन्म’ सा अहसास होता है: बलूचिस्तान का शक्तिपीठ, जहां देवी सती का सिर गिरा था, 700 वर्षों से तीर्थयात्रा के लिखित प्रमाण मिलते हैं
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यहां मां को गुलाब और जैस्मीन के फूल चढ़ाने की परंपरा है।
इन दिनों बलूचिस्तान का लासबेला-मकरान तटीय मार्ग मां के जयकारों से गूंज रहा है। भक्तों के कारवां हिंगलाज माता मंदिर पहुंच रहे हैं। नवरात्र उत्सव के दौरान यह मंदिर पाकिस्तान का सबसे दर्शनीय शक्तिपीठ हैै। दो साल कोविड की वजह से यहां उत्सव सादगी से मनाया गया। इस बार विदेशी लोगों को भी आने की इजाजत दी गई है। भारत, बांग्लादेश, सिंगापुर, बैंकॉक, थाईलैंड और अन्य देशों से भी भक्तों के जत्थे पहुंच रहे हैं।
मां के दर्शन करने आए आदर्श बताते हैं, ‘मैं 234 किमी दूर मीरपुर खास से पैदल चलकर आया हूं। मेरे साथ मुस्लिम दोस्त जमशेद भी है, जो मां के दर्शन करने के लिए उत्साहित है। जैसे मुस्लिमों के लिए मक्का है, वैसे ही हिंदुओं के लिए हिंगलाज का स्थान है।’ स्थानीय मुस्लिम भी यहां आकर प्रार्थना करते हैं। वे इसे ‘नानी का हज’ यानी मां के मंदिर की तीर्थयात्रा कहते हैं। आदर्श के साथ दर्शन के लिए आए जमशेद बताते हैं, ‘हिंगलाज की यात्रा मेरे लिए किसी आध्यात्मिक अनुभव से कम नहीं है। यह ऐसी जगह है, जहां आप रेगिस्तान, पहाड़, नदी और समुद्र देख सकते हैं।’
इस बीच, यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के स्वागत की तैयारी की गई है। आयोजन समिति के प्रमुख कृष्ण लाल बताते हैं कि यहां खास आयोजन चैत्र नवरात्र पर होता है। इस बार शारदीय नवरात्र में यहां 30 हजार लोगों के पहुंचने की उम्मीद है। पवित्र मंदिर की ओर जाने वाली सड़कों पर कालीन बिछा दी गई है। हमने श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए व्यापक इंतजाम किए हैं। यहां दिन-रात भंडारा चल रहा है।’
मंदिर के पौराणिक महत्व पर वे बताते हैं कि यहां तीर्थयात्रा के लिखित प्रमाण 14वीं सदी से मिलते हैं, हालांकि यात्रा का इतिहास इससे कहीं अधिक पुराना है। आज भी बड़ी संख्या में लोग पैदल आते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां की गर्मी में शरीर तपाने से पाप धुल जाते हैं। शुद्धिकरण होता है। नदी में स्नान करने के बाद जब भक्त मां के दर्शन करते हैं तो उन्हें पुनर्जन्म सा अहसास होता है।’
यहां आयोजन सिंध व बलूचिस्तान के हिंदुओं की समिति हिंगलाज शिव मंडली करती हैै। आयोजकों में से एक प्रकाश कुमार बताते हैं कि बंटवारे से 20 वर्ष पहले यह मंडली बनी थी। बंटवारे के बाद, भारत-पाक युद्ध के बाद तीर्थयात्रा कई बार बंद रही। 1986 में 125 तीर्थयात्रियों के साथ यह यात्रा शुरू की गई, अब बंटवारे के पहले की तरह हजारों लोग आते हैं।’
बलूचिस्तान प्रांत की प्रांतीय विधानसभा के सदस्य श्याम लाल बताते हैं कि इस वर्ष विदेशों से भी जत्थे पहुंच रहे हैं, जिनमें भारतीय भी हैं। वे कहते हैं कि तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त जवानों को तैनात किया गया है। इस बीच, स्थानीय सरकार ने तीर्थयात्रियों के लिए मुफ्त चिकित्सा शिविर लगाए हैं, जहां उन्हें कोरोना वैक्सीन भी दी जाएगी।
ज्वालामुखी में फूल चढ़ाने के बाद ही दर्शन, मां को गुलाब और जैस्मीन
यहां भक्त 300 फीट ऊंचे चंद्रगुप और खंडेवरी ज्वालामुखी पर नारियल और फूल चढ़ाते हैं। फिर मंदिर के पास स्थित हिंगोल नदी में स्नान करने के बाद ही मां के दर्शन करते हैं। यहां मां को गुलाब और जैस्मीन के फूल चढ़ाने की परंपरा है। मान्यता है कि दुनिया को भगवान शिव के तांडव से बचाने के लिए विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के पार्थिव शरीर को कई टुकड़ों में काट दिया। ये टुकड़े जिन स्थानों पर गिरे, वे शक्तिपीठ कहलाए। देवी सती का सिर हिंगलाज पहाड़ी पर गिरा था, इसलिए यह 51 शक्तिपीठों में सबसे प्रमुख है।
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