दानिश का जुनून उनके दोस्त की जुबानी: दानिश कहते थे- मेरी खींची हुई तस्वीरों को दुनिया इग्नोर नहीं कर पाएगी; लोग भले मुझे न पहचानें, लेकिन तस्वीरें भूल नहीं पाएंगे

दानिश का जुनून उनके दोस्त की जुबानी: दानिश कहते थे- मेरी खींची हुई तस्वीरों को दुनिया इग्नोर नहीं कर पाएगी; लोग भले मुझे न पहचानें, लेकिन तस्वीरें भूल नहीं पाएंगे

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एक घंटा पहलेलेखक: संध्या द्विवेदी

  • अफगानिस्तान में तालिबानी हमले में फोटो जर्नलिस्ट दानिश की जान चली गई
  • वे कंधार में तालिबानी आतंकियों और अफगानी सुरक्षाकर्मियों के बीच मुठभेड़ को कवर कर रहे थे।

कोरोना की दूसरी लहर में दिल्ली के श्मशान घाट में जलती बेतहाशा लाशों की एक तस्वीर ने देश की ‘असल तस्वीर’ को सबके सामने रख दिया था। लोकनायक जय प्रकाश हॉस्पिटल में एक बेड में ऑक्सीजन लगाए दो लोगों की एक दूसरी तस्वीर ने कोरोना काल में इलाज के लिए जूझ रहे लोगों के संकट को हूबहू कैमरे में कैद कर लिया था। इन तस्वीरों ने सरकार को हिला दिया था।

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान दिल्ली के एक श्मशान घाट में जलती लाशों की यह फोटो दानिश ने ही ली थी।

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान दिल्ली के एक श्मशान घाट में जलती लाशों की यह फोटो दानिश ने ही ली थी।

कोरोना के समय जब पूरा देश लगभग थम सा गया था तब 40 साल के दानिश सिद्दीकी के कैमरे ने ऐसी तस्वीरें खींची जिन्होंने देश ही नहीं दुनिया को हिला कर रख दिया। लेकिन 16 जुलाई को दानिश की जो तस्वीर सामने आई उससे उनके चाहने वाले हैरान हैं। उनके दोस्त सदमे में हैं, परिवार शोक में डूबा है। क्योंकि अफगानिस्तान में तालिबानी हमले में दानिश की जान चली गई। वे गुरुवार रात पाकिस्तान की सीमा से सटे कंधार के स्पिन बोल्डक जिले में तालिबानी आतंकियों और अफगानी सुरक्षाकर्मियों के बीच मुठभेड़ को कवर कर रहे थे।

दानिश के दोस्त शम्स रजा ने दैनिक भास्कर को बताया कि दानिश कहते थे, ‘देखना जब मैं तस्वीरें खीचूंगा और उन पर लिखूंगा तो दुनिया उन्हें इग्नोर नहीं कर पाएगी, लोग भले मुझे न पहचाने पर तस्वीरें भूल नहीं पाएंगे।’

सबकी एक ही गुहार है कि जल्द से जल्द दानिश का शव भारत लाया जाए। विदेश मंत्रालय के मुताबिक शव लाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। लेकिन किस वक्त शव आएगा, इसका जवाब अभी मंत्रालय के पास नहीं है।

शम्स रजा ने बताया कि दानिश को कभी भी संकटग्रस्त इलाके की रिपोर्टिंग में जाने से पहले घबराया या परेशान नहीं देखा, उलटा वे ऐसी जगहों में जाने के लिए हर जतन करते थे।

शम्स रजा ने बताया कि दानिश को कभी भी संकटग्रस्त इलाके की रिपोर्टिंग में जाने से पहले घबराया या परेशान नहीं देखा, उलटा वे ऐसी जगहों में जाने के लिए हर जतन करते थे।

दानिश के दोस्त शम्स रजा कहते हैं, ‘पूरी दुनिया में कहीं किसी संकट की आहट भी दानिश को लगती तो वे वहां जाने के लिए पूरा जोर लगा देते। खासतौर पर संकटग्रस्त इलाकों जैसे कॉन्फ्लिक्ट जोन, वॉर जोन में जाने की खबर उनके जुनून को और तरोताजा कर देती थी।

जब वे जोखिम भरी रिपोर्टिंग कर रहे होते थे तो हम लोग उन्हें संभलकर रहने की हिदायत देते थे, अफगानिस्तान में इससे पहले भी जब वे बाल-बाल बचे थे तो हमने उन्हें वापस आने की सलाह दी थी। लेकिन उन्होंने कहा था, वॉर जोन में हूं, ऐसी घटनाएं तो होंगी ही। मैं आज नहीं तो कल वापस आ ही जाऊंगा। लेकिन उनके बारे में सोचता हूं जिन्हें सालों साल अब इसी युद्ध क्षेत्र में रहना होगा।’

अफगानिस्तान जाने के दिन ही मिला था वीजा, हमें क्या पता था कि यह यह मौत का वीजा है
शम्स बताते हैं, “तकरीबन दो हफ्ते पहले दानिश से मुलाकात हुई थी। दानिश को अफगानिस्तान जाना था पर तब तक वीजा नहीं मिल पाया था। उन्हें वीजा का बेकरारी से इंतजार था, वे परेशान थे कि कहीं वीजा अटक न जाए। उन्हें जिस दिन अफगानिस्तान के लिए निकलना था उसी दिन उनका वीजा क्लियर हुआ, लेकिन हमें क्या पता था कि यह मौत का वीजा साबित होगा।”

उनके घरवाले और हम सभी दोस्त उनके लिए फिक्रमंद रहते थे, वे हमें उलटा समझाते थे कि केवल फोटो ही नहीं खींचता मैं, मुझे यह भी पता है कि इन इलाकों में कैसे खुद को बचाना है। इसलिए डरने की कोई जरूरत नहीं है। दरअसल, रॉयटर्स में दानिश को ऐसी रिपोर्टिंग के लिए बहुत अच्छी ट्रेनिंग मिली थी। उन्हें इन इलाकों में बचने के सारे तरीके बताए गए थे।

कोरोना के दौरान भी दानिश जब रिपोर्टिंग कर रहे थे, तब उन्हें पीपीई किट, शील्ड सब कुछ ऑफिस की तरफ से मुहैया करवाया गया था। दानिश इससे पहले भी इराक जैसे देश में युद्ध की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। हर बार वे जब वापस आते थे तो ढेरों कहानियां साथ लाते थे।’

शम्स कहते हैं कि दोस्तों को दानिश (घड़ी पहने हुए) की कहानियों का इंतजार रहता था, काश दानिश इस बार भी ढेरों कहानियों के साथ वापस आ जाते। दानिश जांबाज थे, डर तो मानों उन्हें छूता भी नहीं था।

शम्स कहते हैं कि दोस्तों को दानिश (घड़ी पहने हुए) की कहानियों का इंतजार रहता था, काश दानिश इस बार भी ढेरों कहानियों के साथ वापस आ जाते। दानिश जांबाज थे, डर तो मानों उन्हें छूता भी नहीं था।

पिता ने बताया- कभी नहीं लगा कि दानिश तनाव में है
शम्स रजा के मुताबिक दानिश के पिता मो. अख्तर सिद्दीकी दानिश का शव जल्द से जल्द भारत लाने की गुहार लगा रहे हैं। उनके पिता से जब कुछ पत्रकारों ने पूछा कि क्या कभी दानिश अफगानिस्तान से बात करते वक्त टेंशन में लगते थे? तो वे कहते हैं- दानिश को ऐसे हालात में काम करने की आदत थी। ऐसा कभी नहीं लगा कि दानिश तनाव में है। दानिश ने 2-4 दिन में आने का वादा भी किया था।’

दानिश (दाएं) की तरक्की बहुत तेज हुई थी। उन्होंने रॉयटर्स में बतौर ट्रेनी ज्वॉइन किया था। लेकिन बाद में वे मुंबई के चीफ फोटोग्राफर बनकर गए। इस वक्त वे इंडिया में रॉयटर्स के चीफ फोटोग्राफर थे।

दानिश (दाएं) की तरक्की बहुत तेज हुई थी। उन्होंने रॉयटर्स में बतौर ट्रेनी ज्वॉइन किया था। लेकिन बाद में वे मुंबई के चीफ फोटोग्राफर बनकर गए। इस वक्त वे इंडिया में रॉयटर्स के चीफ फोटोग्राफर थे।

जर्नलिस्ट से फोटो जर्नलिस्ट ऐसे बने दानिश
दानिश का जर्नलिज्म का सफर न्यूज एक्स से शुरू हुआ था। 2007 में दोस्त शम्स और दानिश ने एक साथ न्यूज एक्स से अपने करियर की शुरुआत की थी। एक डेढ़ साल बाद दानिश इंडिया टुडे के टीवी चैनल में चले गए। 2010 में दानिश को जर्नलिज्म का वो प्लेटफार्म मिला जिसका सपना वे जर्नलिज्म की पढ़ाई करते वक्त देखा करते थे।

उन्हें रॉयटर्स की तरफ से फोटो जर्नलिज्म का ऑफर मिला। दोस्त शम्स कहते हैं, ‘दरअसल, वे टीवी जर्नलिस्ट नहीं बल्कि शुरू से ही फोटो जर्नलिस्ट बनना चाहते थे। लेकिन पढ़ाई के तुरंत बात कैंपस सेलेक्शन हुआ तो उन्होंने सोचा कि शुरुआत तो करते हैं फिर देखा जाएगा अपना ख्वाब कैसे पूरा करना है।

दानिश की तरक्की बहुत तेज हुई थी। उन्होंने रॉयटर्स में बतौर ट्रेनी ज्वॉइन किया था। लेकिन बाद में वे मुंबई के चीफ फोटोग्राफर बनकर गए। इस वक्त वे इंडिया के चीफ फोटोग्राफर थे। मुंबई में धारावी झुग्गियों की तस्वीरों ने उन्हें रॉयटर्स के टॉप अधिकारियों की नजर में ला दिया था।’

स्कूल से लेकर पत्रकार बनने तक का सफर ऐसा रहा
दानिश की स्कूलिंग दिल्ली में फादर एग्नेल स्कूल में हुई। उन्होंने जामिया मिल्लिया से पत्रकारिता की। शम्स कहते हैं कि स्कूल के दिनों से ही दानिश हर तस्वीर को बारीकी से देखते थे। पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान तो उन पर फोटो जर्नलिस्ट बनने का भूत ही सवार था। उनके घर में उन पर कुछ बनने या न बनने का दबाव बिल्कुल नहीं था। उनके पिता सीनियर प्रोफेसर थे। मां हाउस वाइफ थीं। तीन भाई-बहनों में दानिश सबसे बड़े थे। शायद इसीलिए वे बेहद जिम्मेदार भी थे।

दानिश (दाएं) के दोस्त बताते हैं कि दानिश कहीं भी रहते, लेकिन 2-3 दिन में दोस्तों से बात करना नहीं भूलते थे।

दानिश (दाएं) के दोस्त बताते हैं कि दानिश कहीं भी रहते, लेकिन 2-3 दिन में दोस्तों से बात करना नहीं भूलते थे।

दोस्त, पति, बेटा और पिता हर भूमिका में परफेक्ट थे
शम्स बताते हैं कि दानिश ने लव मैरिज की थी। उन दोनों की मुलाकात जर्मनी में हुई थी। दानिश वहां अपने किसी ऑफिसियल प्रोजेक्ट के तहत ही गए थे। दानिश ने एक ही बार प्रेम किया और उसी से विवाह भी किया। एक बेटे के तौर पर मैं जब उन्हें देखता हूं तो वे हमेशा अपने पिता और मां के लिए फिक्रमंद रहते थे। उनकी जोखिम भरी यात्राओं से हमेशा डरने वाली अपनी पत्नी को वे बहुत चतुराई से समझा देते थे।

2018 में मिला था पुलित्जर
रोहिंग्या शरणार्थी संकट की कवरेज के लिए फीचर फोटोग्राफी कैटेगरी में दानिश की टीम को साल 2018 का पुलित्जर सम्मान मिला था। उन्होंने अफगानिस्तान और इराक की जंग के अलावा कोरोना महामारी, नेपाल भूकंप और हॉन्ग-कॉन्ग के विरोध प्रदर्शनों को भी कवर किया था।

शम्स ने बताया कि हम जब भी दानिश को हिफाजत के साथ रहने की हिदायत देते थे तो वे कहते थे कि यार आऊंगा तो कई घंटे हम दोस्त साथ गुजारेंगे। खूब कहानियां सुनाऊंगा। इस बार पूरा पिटारा लेकर आ रहा हूं।

शम्स ने बताया कि हम जब भी दानिश को हिफाजत के साथ रहने की हिदायत देते थे तो वे कहते थे कि यार आऊंगा तो कई घंटे हम दोस्त साथ गुजारेंगे। खूब कहानियां सुनाऊंगा। इस बार पूरा पिटारा लेकर आ रहा हूं।

विदेश मंत्रालय ने कहा- अभी यह नहीं बता सकते कब आएगा दानिश का शव
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बताया, ‘डेड बॉडी को लाने के लिए अफगानिस्तान सरकार से बातचीत हो चुकी है। हम जल्द ही शव लाएंगे। लेकिन अभी समय नहीं बता सकते। बागची से यह पूछने पर कि दानिश की मौत किसकी गोली से हुई है? तालिबान या सेना? वे कहते हैं- दानिश युद्ध क्षेत्र में रिपोर्टिंग कर रहे थे। इस वक्त संघर्ष चरम पर है। अभी हम इस बारे में सूचना जुटा रहे हैं।

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