तालिबान से समझौता कर रूस एक बार फिर अफगानिस्तान लौटने की तैयारी में?
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अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की हो रही वापसी के साथ ही तालिबान ने अफगानिस्तान के कई जिलों पर कब्ज़ा कर लिया है और कई इलाकों को घेर लिया है। इस दौरान रूस ने 20 जुलाई को कहा है कि तालिबान, अफगानिस्तान और विदेशी सैनिकों के साथ जारी लड़ाई के बावजूद भी राजनीतिक ‘समझौता’ करने को तैयार था। लेकिन अब बात बातचीत से बहुत आगे बढ़ गई है क्योंकि तालिबान ने अफगानिस्तान में बढ़त बना ली है।
न्यूज़ एजेंसी AFP की रिपोर्ट मुताबिक़ अफगानिस्तान में रूस के राजदूत ज़मीर काबुलोव ने अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई के साथ एक कांफ्रेंस के दौरान कहा कि उग्रवादी अन्य दलों द्वारा बातचीत के लिए पेश किए गए राजनीतिक प्रस्तावों पर विचार करने को तैयार थे।
काबुलोव ने क्या कहा?
काबुलोव ने कांफ्रेंस में कहा की पिछले करीब 20 सालों से तालिबान का एक बड़ा धड़ा युद्ध से वाकई तंग आ गया है और मानता है कि मौजूदा गतिरोध के लिए राजनीतिक समाधान खोजने की ज़रूरत है। उन्होंने आगे कहा कि उग्रवादी समूह ने अपने बयायों और कारवाई के आधार पर दिखाया था कि वह ‘राजनीतिक समझौते’ को तैयार है। लेकिन यह साफ़ था कि वह चाहते थे कि समझौता उनके दृष्टिकोण से हो।
काबुलोव का यह कमेंट अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच हाल ही में हुए क़तर में अनिर्णायक वार्ता के एक और दौर के बाद आया है। इस वार्ता से कई लोगों को उम्मीद थी कि शायद दोनों पक्षों किसी समझौते पर पहुंच जाएं लेकिन ऐसा नहीं हो सका है।
रूस की नज़रें अफगानिस्तान पर
रूस की नज़रें लगातार अफगानिस्तान पर रही हैं। 1979 में जब रूस ने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा किया था तो उसके अगले 10 सालों में 14 हज़ार से अधिक रूसी सैनिकों कि मौत हुई थी।
हालिया सालों में रूस ने तालिबान से बातचीत की है। उस तक पहुंचने की कोशिश की है। तालिबान के नेताओं के साथ कई दौर की बातचीत की है। और ये बातचीत अब भी जारी है।
रूस पूर्व सोवियत मध्य एशियाई देशों में अस्थिरता के संभावित फैलाव को भी देख रहा है जहां रूस के कई सैन्य अड्डे हैं। मामले को लेकर रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा है कि रूस चिंतित है कि अफगानिस्तान में अस्थिरता से आतंकी खतरे और मादक पदार्थों की तस्करी बढ़ सकती है।
रूस अगले महीने ताजिकिस्तान में जॉइंट मिलिट्री ड्रिल्स में भाग ले रहा है। इस सैन्य अभ्यास में रूस अफगानिस्तान के साथ अपनी साझा सीमा को सुरक्षित करने कि तैयारी में जुटा हुआ है।
अमेरिका के जाने के बाद चीन बड़ा खिलाड़ी?
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद रूस एक बार फिर से अफगानिस्तान में एक्टिव हो सकता है। चूंकि रूस जैसे देश का अफगानिस्तान में बहुत पुराना अनुभव रहा है और रूस जैसा बड़ा खिलाड़ी अफगानिस्तान में खाली हो रहे जगह को भरने की पूरी कोशिश में जुटा हुआ है। मध्य एशिया में रूस का प्रभाव किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में रूस उसे अफगानिस्तान तक ले जाना चाहता है। रूस तालिबान के साथ काम करने को लेकर नए तरीके पर काम कर सकता है। क्योंकि कई डिफेंस एक्सपर्ट्स मानते हैं कि तालिबान जल्द ही अफगानिस्तान पर पूरी तरह से कब्जा कर सकता है। रूस के साथ ही चीन भी अफगानिस्तान में बड़ा खिलाड़ी बनकर उभरता नज़र आ रहा है।
चीन के शिनजियांग प्रदेश की सीमा अफगानिस्तान से सीधे तौर पर लगती है। ऐसे में चीन की अपनी चिंताएं है कि तालिबान के बढ़ते प्रभाव का शिनजियांग पर कोई प्रभाव न हो। हाल ही में तालिबान ने भी चीन को अफगानिस्तान का दोस्त बताया है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि चीन पेशावर को काबुल से जोड़कर अफगानिस्तान को आधिकारिक तौर पर चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर से जोड़ देगा। माने चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को अफगानिस्तान के जरिए और मजबूत करने की तैयारी में है। इसके साथ ही चीन कई सालों से अफगानिस्तान से खनिज पदार्थों को निकालने पर काम कर रहा है। ये काम अस्थिर अफगानिस्तान के रहते हुए संभव नहीं है। ऐसे में चीन की नज़रें अफगानिस्तान के राजनीतिक भविष्य पर हैं अटकी हुई हैं।
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