तालिबान के वादों पर दुनिया को संदेह

तालिबान के वादों पर दुनिया को संदेह

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अफगानिस्तान की सत्ता पर नियंत्रण के बाद तालिबान ने पत्रकारों से बातचीत में कहा है कि मीडिया और महिलाओं को आजादी दी जाएगी. लेकिन संयुक्त राष्ट्र को इन वादों पर संदेह है.मंगलवार को अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि वे 1990 के दशक जैसे अमानवीय नियम-कानून लागू नहीं करेंगे और महिलाओं व मीडिया को आजादी दी जाएगी. लेकिन संयुक्त राष्ट्र समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय इन वादों पर भरोसा नहीं कर पा रहा है.

प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि तालिबान के शब्दों पर भरोसा करने से पहले उनके कर्मों को देखना होगा. यूएन प्रवक्ता स्टीफन डुजारिक ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, “हमें यह देखना होगा कि असल में होता क्या है. हमें देखना होगा कि वादों को निभाने के लिए जमीन पर क्या किया जाता है.”

जर्मनी ने भी तालिबान के वादों पर संदेह जताया है और शब्दों से ज्यादा कर्मों के आधार पर उनके बारे में राय बनाने की बात कही है. उधर अमेरिका ने उम्मीद जताई है कि तालिबान अपने वादों पर खरा उतरेगा.

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अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा, “अगर तालिबान कहते हैं कि वे अपने नागरिकों के अधिकारों का सम्मान करेंगे तो हम उन पर निगाह रखेंगे कि वे अपने वादे निभाएं.

क्या कहा तालिबान ने?

20 साल बाद अफगानिस्तान की सत्ता पर दोबारा काबिज होने के बाद इस अतिवादी इस्लामिक संगठन ने मंगलवार को अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस की और पत्रकारों के सवालों के जवाब दिए. तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा कि सभी को माफ किया जाएगा और किसी से बदला नहीं लिया जाएगा.

मुजाहिद ने कहा, “हम कोई अंदरूनी या बाहरी दुश्मन नहीं चाहते. जो भी दूसरी तरफ से हैं, ए से जेड तक सबको माफ किया जाएगा.” तालिबान प्रवक्ता ने कहा कि जल्दी ही नई सरकार की स्थापना की जाएगी. हालांकि यह स्पष्ट नहीं किया गया कि नई सरकार का स्वरूप कैसा होगा लेकिन यह जरूर कहा कि सभी पक्षों से संपर्क किया जाएगा.

जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा कि महिलाओं को काम करने और पढ़ेने की आजादी होगी और ‘इस्लाम के दायरे में रहकर’ वे समाज में बहुत सक्रिय भूमिका निभाएंगी.

तालिबान ने 1996 से 2001 से अफगानिस्ता पर राज किया था. उस दौरान देश में शरिया यानी इस्लामिक कानून लागू कर दिया गया था और महिलाओं के काम करने, लड़कियों के पढ़ने और बिना किसी पुरुष के अकेले घर से बाहर जाने जैसी पाबंदियां लगा दी गई थीं.

तालिबान के दोबारा सत्ता में आने पर बहुत से लोगों को वैसे ही कानून दोबारा लागू होने का भय है.

महिलाओं में आशंका

तालिबान द्वारा किए गए वादों को लेकर अफगानिस्तान की महिलाओं को आशंका है. महिलाओं की शिक्षाओं के लिए काम करने वालीं 23 साल की पश्ताना दुर्रानी कहती हैं, “वे जो कह रहे हैं, उन्हें करके दिखाना होगा. फिलहाल तो वे ऐसा नहीं कर रहे हैं.”

जब तालिबान एक-एक कर इलाके जीतते हुए काबुल की ओर बढ़ रहे थे तब बहुत सी महिलाओं काम छोड़ देने को कहा गया. ऐसी भी खबरें आई हैं कि तालिबान लड़ाके लोगों के घरों में घुसकर मार-काट मचा रहे हैं. हालाकि तालिबान प्रवक्ता ने कहा कि ऐसा नहीं होगा.

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मुजाहिद ने कहा, “आपको कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा. कोई आपके दरवाजे नहीं खटखटाएगा. अगर कोई ऐसा करता है तो उसे सजा दी जाएगी.

” मुजाहिद ने अफगानिस्तान छोड़कर जाने की कोशिश कर रहे परिवारों से भी लौटने की अपील करते हुए कहा कि आपको कुछ नहीं होगा.

आप्रवासियों का संकट

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के मुताबिक तालिबान ने उन लोगों को सुरक्षित रास्ता देने पर सहमति दे दी है जो अमेरिका के निर्देशन में अफगानिस्तान से जाना चाहते हैं. हालांकि जेक सलिवन ने माना कि काबुल एयरपोर्ट पहुंचने की कोशिश कर रहे कुछ लोगों को लौटाया गया है या उनसे मार-पीट भी की गई है. लेकिन उन्होंने बताया कि बड़ी संख्या में लोग एयरपोर्ट पहुंच रहे हैं.

नाटो महासचिव येन्स स्टोल्टनबर्ग ने कहा है कि तालिबान को उन लोगों को जाने देना चाहिए जो देश छोड़ना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि नाटो का लक्ष्य एक ऐसा देश बनाने में मदद करना था जो विकास करने की हालत में हो और अगर ऐसा नहीं होता है तो हमला भी किया जा सकता है.

ब्रिटेन ने कहा है कि वह अफगानिस्तान से इस साल पांच हजार शरणार्थी लेने पर विचार कर रहा है, जो लंबी अवधि में 20 हजार तक हो सकता है. ब्रिटिश गृह मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, “भविष्य में भी पुनर्वास योजना को जारी रखा जाएगा और लंबी अवधि में संख्या 20 हजार तक बढ़ाई जा कती है.”

वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी).

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