कैप्टन की कुर्सी को दूसरी बार चुनौती: 17 साल पहले राजिंदर कौर भट्‌ठल को डिप्टी सीएम बना सुलझा था विवाद, इस बार सिद्धू के आक्रामक तेवरों से कांग्रेस के लिए बड़ा सियासी संकट

कैप्टन की कुर्सी को दूसरी बार चुनौती: 17 साल पहले राजिंदर कौर भट्‌ठल को डिप्टी सीएम बना सुलझा था विवाद, इस बार सिद्धू के आक्रामक तेवरों से कांग्रेस के लिए बड़ा सियासी संकट

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  • 17 Years Ago, Rajinder Kaur Bhattal Was Made Deputy CM, The Dispute Was Resolved, This Time A Big Political Crisis For The Congress Due To Sidhu’s Aggressive Attitude

जालंधर8 मिनट पहलेलेखक: मनीष शर्मा

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कैप्टन की कुर्सी को दूसरी बार चुनौती: 17 साल पहले राजिंदर कौर भट्‌ठल को डिप्टी सीएम बना सुलझा था विवाद, इस बार सिद्धू के आक्रामक तेवरों से कांग्रेस के लिए बड़ा सियासी संकट

कैप्टन अमरिंदर सिंह।

पंजाब में कांग्रेस के दिग्गज नेता मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को दूसरी बार कुर्सी से बेदखल करने की चुनौती मिली है। 2004 में जब राजिंदर कौर भट्‌ठल ने कैप्टन को चुनौती दी थी तो हाईकमान ने उन्हें डिप्टी सीएम बना मामला सुलझा लिया। हालांकि इस बार चुनौती वही है लेकिन नवजोत सिद्धू की वजह से हालात ज्यादा आक्रामक हैं। वहीं, बगावत करने वालों का यहां तक कहना है कि अगर हाईकमान फैसला नहीं लेता तो फिर वो आगे का फैसला लेंगे। संभव है कि कैप्टन की केबिनेट से कुछ मंत्री इस्तीफा दे दें। ऐसे में हाईकमान तक को चुनौती वाले इस मामले से विस चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए यह बड़ा सियासी संकट साबित हो सकता है।

मंगलवार को मंत्री तृप्त राजिंदर बाजवा के आवास पर मंत्री चरणजीत चन्नी, सुखजिंदर रंधावा व सुखबिंदर सिंह सुख सरकारिया ने करीब 28 विधायकों के साथ बैठक की। यह सब कैप्टन की कारगुजारी से असंतुष्ट हैं। इससे पहले कैप्टन 2002 से 2007 में पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। इस दौरान राजिंदर कौर भट्‌ठल ने भी करीब 40 विधायकों को साथ लेकर हाईकमान से मुलाकात की थी। उनकी मांग भी यही थी कि कैप्टन को कुर्सी से हटाया जाए। तमाम विवाद के बावजूद कैप्टन भारी पड़े और भट्‌ठल को डिप्टी सीएम की कुर्सी मिल गई।

चुनावी जीत की आस को बनाएंगे कैप्टन के खिलाफ हथियार

इस बार हालात कुछ अलग हैं। पंजाब कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिद्धू पार्टी के भीतर रहकर ही कैप्टन के खिलाफ मोर्चा खोलकर बैठे हैं। अब उनके खेमे के माने जाते मंत्रियों व नवनियुक्त महासचिव प्रगट सिंह ने कैप्टन को हटाने का झंडा थाम लिया है। यही नेता दिल्ली में जाकर कांग्रेस हाईकमान को बताने वाले हैं कि किस तरह कांग्रेस पंजाब में जमीन से पूरी तरह कट चुकी है। इसके लिए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ही जिम्मेदार हैं। अगले साल विस चुनाव जीतना है तो कैप्टन को हटाना होगा। सिद्धू भी लगातार कैप्टन पर नशा सौदागरों पर कार्रवाई, श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेदअबी के दोषियों पर कार्रवाई, बिजली समझौते जैसे मुद्दे हल न होने का आरोप लगाते जा रहे हैं।

मंत्री बाजवा बोले- 2017 वाले कैप्टन नहीं रहे अमरिंदर

मंत्री तृप्त राजिंदर बाजवा ने कहा कि अमरिंदर सिंह अब 2017 वाले कैप्टन नहीं रहे। कैप्टन पर बादलों से मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं। उस वक्त बाजवा के साथा राजनीति की माझा ब्रिगेड के नाम से मशहूर सुखजिंदर रंधावा व सुखबिंदर सिंह सुख सरकारिया ने कैप्टन के लिए खूब मेहनत की थी। कांग्रेस के चुनाव प्रचार से लेकर कैप्टन को ही पंजाब का सबसे बड़ा नेता साबित करने में उनका भी जोर लगा रहा। सरकार बनी और कैप्टन ने इन तीनों को मंत्री भी बनाया। हालांकि बाद में रिश्ते बिगड़ते चले गए। हालात यह बन गए कि अब इन्हीं तीनों ने पहले कैप्टन को पटखनी देकर सिद्धू का पंजाब कांग्रेस प्रधान बनने का रास्ता साफ किया। अब कैप्टन को हटाने की जंग छेड़ दी है।

2017 में ही पड़ गई थी बगावत की नींव, माकूल मौका आज आया

कैप्टन के खिलाफ यह सीधी बगावत भले ही अब हुई हो लेकिन इसकी नींव 2017 में ही पड़ गई थी। सरकार बनते ही सिद्धू व रंधावा करीब आ गए थे। सिद्धू ने पंजाब में केबल नेटवर्क को लेकर बड़ी जंग छेड़ी थी। दोनों चाहते थे कि केबल पर कार्रवाई हो और इसे फायदा पहुंचाने के मामले में सरकार सुखबीर पर सीधी कार्रवाई करे। सिद्धू ने मामला विधानसभा में भी उठाया था। हालांकि कैप्टन ने रिपोर्ट मंगवाने की बात कहकर कार्रवाई का भरोसा दिया। सिद्धू ने लोकल बॉडी मंत्री होने की वजह से अपने कर्मचारियों को लगा सर्वे कराया। तब तक सिद्धू ही कमजोर पड़ते गए और मंत्रालय छिन गया। अब सिद्धू सरकार से बाहर हैं लेकिन पंजाब में संगठन के सबसे ताकतवर व्यक्ति हैं। माकूल मौका दिखा तो अब कैप्टन की कुर्सी खींचने के लिए कांग्रेस के भीतर जंग शुरू हो गई है।

हाईकमान मौका देगी या नए चेहरे से वायदे पूरे करेगी?

सबकी नजर अब इस बात पर है कि क्या कांग्रेस हाईकमान कैप्टन को और मौका देगी, ताकि वो 18 सूत्रीय फार्मूले पर काम कर सकें। ऐसा न हुआ तो क्या नए चेहरे के साथ पिछले चुनावी वायदों पर काम करेगी। ऐसा हुआ तो फिर सबसे बड़ी चुनौती उसी सीएम चेहरे की होगी।

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