किसानों का फतेह मार्च: सिंघु बॉर्डर की मिट्टी-ईंट लेकर लौट रहे किसान; ताकि सत्ता को सबक और पीढ़ियों को सत्याग्रह याद रहे
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चंडीगढ़17 मिनट पहले
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घर लाने के लिए सिंघु बॉर्डर पर मिट्टी खोदते किसान।
दिल्ली बॉर्डर से किसानों की घर वापसी शुरू हो गई है। सिंघु बॉर्डर से लौटते वक्त किसान वहां की मिट्टी भी लेकर आ रहे हैं। मानसा के किसान मनजिंदर सिंह कहते हैं कि यह ऐसी यादगार रहेगी, जो सत्ता को सबक और पीढ़ियों को किसान सत्याग्रह की याद दिलाएगी। हम रहें या न रहें, लेकिन यह निर्जीव मिट्टी और ईंट 378 दिन चले आंदोलन को जिंदा रखेगी।
केंद्र सरकार के 3 कृषि सुधार कानूनों के विरोध में यह आंदोलन शुरू हुआ था। पहले पंजाब और फिर दिल्ली बॉर्डर पर लगातार आंदोलन चला। आखिरकार केंद्र सरकार को झुकना पड़ा और तीनों कृषि कानून एक ही दिन में वापस हो गए।
घर लाने के लिए बाल्टी में मिट्टी भरता किसान
सिंघु बॉर्डर पर किया था ‘मिट्टी सत्याग्रह’
किसानों ने सिंघु बॉर्डर पर मिट्टी सत्याग्रह भी किया था। जिसमें देश के अलग-अलग राज्यों से किसान मिट्टी लेकर सिंघु बॉर्डर पहुंचे थे। जिसके जरिए केंद्र के कृषि सुधार कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन का समर्थन दर्शाया गया। 30 मार्च से 6 अप्रैल तक किसानों ने मिट्टी सत्याग्रह यात्रा भी निकाली थी। यह यात्रा गुजरात से शुरु होकर राजस्थान, हरियाणा, पंजाब होते हुए दिल्ली की सीमा पर किसानों के सभी मोर्चों पर पहुंची। देशभर से 23 राज्यों के 1500 गांवों की मिट्टी लेकर किसान संगठनों के साथी इस यात्रा से जुड़े थे।
डिब्बे में सिंघु बॉर्डर की मिट्टी लेकर आता किसान
शांतिपूर्ण आंदोलन फिर भी 700 से ज्यादा जानें गई
एक साल से ज्यादा समय तक चला किसान आंदोलन शांतिपूर्ण रहा। 26 जनवरी को लाल किला हिंसा को छोड़ दें तो किसान आंदोलन को लेकर कोई बड़ी हिंसक वारदात नहीं हुई। हालांकि लाल किला हिंसा वालों से भी किसान संगठनों ने किनारा कर लिया था। इसके बावजूद इस आंदोलन में 700 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। हालांकि किसान भीषण गर्मी, कड़ाके की ठंड, मूसलाधार बारिश और आंधी-तूफान में भी सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर डटे रहे।
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