ऐलनाबाद का परिणाम सैलजा के लिए झटका: अपने गढ़ में कमजोर साबित हुईं, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष ने ही पवन को पार्टी जॉइन करवा दिलवाया था टिकट

ऐलनाबाद का परिणाम सैलजा के लिए झटका: अपने गढ़ में कमजोर साबित हुईं, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष ने ही पवन को पार्टी जॉइन करवा दिलवाया था टिकट

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10 घंटे पहले

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ऐलनाबाद का परिणाम सैलजा के लिए झटका: अपने गढ़ में कमजोर साबित हुईं, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष ने ही पवन को पार्टी जॉइन करवा दिलवाया था टिकट

गुटबाजी के बीच ऐलनाबाद उप चुनाव का परिणाम कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा के लिए बड़े झटके से कम नहीं हैं। क्योंकि कांग्रेस प्रत्याशी पवन बेनीवाल को सैलजा ने ही पार्टी जॉइन करवाकर टिकट दिलवाया था। अब उनके लिए चिंतन का समय है कि वह इन परिस्थितियों में कैसे पार्टी को मजबूत करेंगी।

ऐलनाबाद उप चुनाव करे दौरान कांग्रेस में गुटबाजी पूरी तरह हावी रही। पार्टी भूपेंद्र सिंह हुड्डा और सैलजा खेमे में बंटी नजर आई। ऐन मौके पर प्रत्याशी बदलना भी कांग्रेस के खिलाफ गया। इससे पार्टी में स्थानीय स्तर पर गुटबाजी बढ़ी।

बरौदा उप चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपना शो दिखाया और पार्टी की झोली में सीट डाल दी। ऐसा ही कुछ सैलजा यहां करना चहती थीं, लेकिन वह इसमें चूक गईं। सिरसा कुमारी सैलजा का अपने क्षेत्र है। सिरसा संसदीय सीट के प्रभुवाला उनका पैतृक गांव है। इस संसदीय सीट से वह सांसद रही हैं। सैलजा के पिता स्व. दलबीर केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं। वह यहां से 1957 और 62 में जीतने के बाद उप सिचांई मंत्री रहे। 70 से 73 तक केंद्रीय पेट्रोलियम राज्यमंत्री बने। 1983 से 84 में कोयला मंत्री भी रहे। पार्टी संगठन में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हरियाणा कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव भी रहे। कुमारी सैलजा यहां से सांसद रही हैं। सैलजा 1991 और 1996 में यहां जीत चुकी हैं। वह भी केंद्र में नरसिम्हा राव सरकार में राज्य मंत्री रहीं। 2004 में उन्होंने यहां से जीत हासिल की थी। उस समय भी उन्हें केंद्र में मंत्री पद मिला। बाद में कुमारी सैलजा 2009 में अंबाला संसदीय सीट से चुनाव लड़कर केंद्रीय मंत्री बनीं।

पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा।

पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा।

इसलिए भी कांग्रेस के लिए अहम था ऐलनाबाद चुनाव

कांग्रेस की सबसे बड़ी कमाजोरी रही कि उसका अपना संगठन ही नहीं है। दोनों सीनियर नेताओं में कोई तालमेल नहीं है। सेलजा की संगठन पर कोई पकड़ नहीं है। जिनकी संगठन पर पकड़ है, उनके साथ सैलजा तालमेल नहीं बैठा पा रही हैं। इसलिए अहम की लड़ाई में कांग्रेस का बंटाधार हो रहा है। राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह का मानना है कि पंजाब की तरह हरियाणा में भी केंद्रीय नेतृत्व को कठोर और ठोस निर्णय लेना पड़ेगा। अन्यथा कांग्रेस के लिए आने वाले दिन संकटभरे हो सकते हैं।

ऐन मौके पर उम्मीदवार का चयन भी भारी पड़ा

दयाल सिंह कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल और हरियाणा की राजनीतिक के अच्छे जानकार डॉ. रामजी लाल ने कहा कि कांग्रेस ने जिस तरह से ऐन मौके पर उम्मीदवर बदला, यह उनकी पहली हार थी। भाजपा से आए पवन बेनीवाल को टिकट देकर अपने कार्यकर्ताओं को निराश किया। इससे कहीं न कहीं भरत बेनीवाल का मनोबल टूटा। साथ ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भी अच्छा संदेश नहीं गया। पूरे चुनाव में कांग्रेस कार्यकर्ता निष्क्रिय रहे। इसलिए कांग्रेस अब इस स्थिति में है।

कांग्रेस को चिंतन-मनन की जरूरत

बहरहाल कांग्रेस को अब चिंतन और मनन करने की जरूरत है। क्योंकि कांग्रेस न तो किसान आंदोलन को भुना पाई, न महंगाई को न ही लोगों के गुस्से को। यह पूरी तरह से कांग्रेस की विफलता है। और इसके लिए कुमारी सैलजा की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। हालांकि जिम्मेदारी से भूपेंद्र हुड्डा भी मुक्त नहीं हो सके। क्योंकि वह न सिर्फ विपक्ष के नेता है, बल्कि खुद को जाट नेता के तौर पर स्थापित करते भी नजर आते हैं। ऐसी स्थिति में एेलनाबाद सीट पर उनकी जातिगत पकड़ में कोई मजबूती नहीं दिखी।

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