ऐलनाबाद उपचुनाव पर भास्कर एग्जिट पोल: अभय चौटला को बढ़त पर जीत का अंतर 10 हजार से कम रह सकता है, कांग्रेस दौड़ से बाहर

ऐलनाबाद उपचुनाव पर भास्कर एग्जिट पोल: अभय चौटला को बढ़त पर जीत का अंतर 10 हजार से कम रह सकता है, कांग्रेस दौड़ से बाहर

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ऐलनाबाद9 मिनट पहले

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ऐलनाबाद उपचुनाव पर भास्कर एग्जिट पोल: अभय चौटला को बढ़त पर जीत का अंतर 10 हजार से कम रह सकता है, कांग्रेस दौड़ से बाहर

हरियाणा के सिरसा जिले की ऐलनाबाद सीट पर उपचुनाव हुए। मतगणना 2 नवंबर को होगी। हलके के मतदाताओं का मूड जानने के लिए दैनिक भास्कर ने सीट का एग्जिट पोल कराया है। पोल के मुताबिक, इनेलो के अभय चौटाला अपनी पारंपरिक सीट पर इस बार भी सबसे आगे हैं। हालांकि जीत का अंतर 10 हजार से कम हो सकता है। सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी जीत की दौड़ से बाहर हैं और पार्टी के ज्यादा एक्टिव न होने के कारण नॉन-जाट वोटर बीजेपी की ओर जा सकता है। हालांकि किसानों के विरोध, भीतरघात समेत कई ऐसे फैक्टर हैं जिनके कारण ऐलनाबाद सीट पर सत्ताधारी गठबंधन की राह मुश्किल हो गई है और समीकरण फिर इनेलो के ही पक्ष में बनते दिख रहे हैं। आइए इन फैक्टर्स पर एक नजर डालें…

किसान आंदोलन सबसे बड़ी भूमिका में
किसान आंदोलन इस चुनाव में बड़ी भूमिका निभाता नजर आ रहा है। किसान प्रदेश में कई भाजपा-जजपा का विरोध कर रहे हैं। इस वजह से भाजपा कार्यकर्ता भी बचाव की मुद्रा में है। वे खुलकर भाजपा उम्मीदवार के साथ आने से बच रहे हैं। शनिवार को भाकियू हरियाणा के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने किसानों को भाजपा-जजपा को छोड़कर किसी भी नेता को वोट देने के लिए कहा। चढूनी ने कहा कि किसान भाजपा-जजपा सरकार का हरियाणा में विरोध कर रहे हैं, लेकिन किसी का पक्ष नहीं ले रहे हैं। ऐसे में इन पार्टियों को छोड़कर अन्य किसी भी प्रत्याशी का चयन किसान खुद अपने विवेक से करें।

भीतरघात भी पिछड़ने की बड़ी वजह
ऐलनाबाद उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी और जननायक जनता पार्टी के सत्ताधारी गठबंधन के लिए प्रतिष्ठा का सवाल रहा। राज्य में सरकार होने के बावजूद पार्टी ने किसी भी पुराने कार्यकर्ता पर अपना विश्वास नहीं जताया। सीट के लिए ऐन मौके पर पार्टी जॉइन करने वाले गोविंद कांडा को पार्टी का उम्मीदवार बनाया। वहीं कांग्रेस ने भी ऐसा ही किया और पिछला चुनाव भाजपा से लड़ने वाले पवन बेनीवाल को प्रत्याशी बना दिया। इससे दोनों दलों में भीतरघात भी पिछड़ने का एक बड़ा कारण बना। ऐन मौके पर पार्टी जॉइन करने वालों को उम्मीदवार बनाने पर टिकट के कुछ दावेदारों ने प्रचार के दौरान ही अलग राग अलापना शुरू कर दिया था।

भाजपा का पुराना वर्कर रहा नाराज
गोविंद कांडा के उम्मीदवार घोषित होने के बाद से ही भाजपा में दो धड़े बन गए थे। एक कांडा का व्यक्तिगत सपोर्टर और दूसरा भाजपा के पुराने वर्कर। दोनों में चुनाव के दौरान कोई तालमेल नहीं दिखा। पुराने पार्टी वर्करों को दरकिनार करना ही भाजपा के बड़े खेमे में नाराजगी का कारण रहा। चुनाव के ऐन मौके पर पार्टी में आए गोविंद कांडा़ को भाजपा का स्थानीय कार्यकर्ता खुल कर समर्थन में नहीं आया है। वहीं भाजपा ने इनमें एकजुटता के लिए कोई रणनीति भी नहीं तैयार की। इस सीट पर न पार्टी के पन्ना प्रमुख नजर आए और न प्रचारक ही वैसा काम कर पाए।

कांग्रेस ने चुनाव में नहीं दिखाई ज्यादा सक्रियता
कांग्रेस इस सीट पर चुनाव प्रचार के दौरान ज्यादा एक्टिव नहीं दिखी। इसके कई कारण है और सबसे बड़ा फैक्टर यही रहा कि यदि कांग्रेस अधिक सक्रिय हो जाती तो वोट इनेलो के अभय चौटाला के ही ज्यादा कटते। इससे हार-जीत के समीकरण प्रभावित होते। साथ ही कांग्रेस अपनी अधिक सक्रियता के कारण भाजपा को फायदा नहीं पहुंचाना चाहती थी। हालांकि कांग्रेस के ज्यादा सक्रिय न होने के कारण इस सीट पर जातिगत वोटरों का समीकरण भाजपा को फायदा पहुंचा सकता है, क्योंकि नॉन जाट वोटर छिटक कर भाजपा की झोली में गिर सकता है।

गुटबाजी के कारण भी कांग्रेस बैकफुट पर
हरियाणा कांग्रेस में कुमारी सैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा के खेमों के बीच गुटबाजी जगजाहिर है। सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार पवन बेनीवाल को कुमारी सैलजा ही पार्टी में लेकर आईं। इसी वजह से हुड्‌डा खेमे ने चुनाव से किनारा कर रखा और वैसी सक्रियता नहीं दिखाई जैसी बरौदा उपचुनाव में थी। वहीं पवन बेनीवाल से पहले ऐलनाबाद सीट पर भरत सिंह बेनीवाल दावेदार थे। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि टिकट कटने के कारण उनका गुट भी अंदरखाते पार्टी प्रत्याशी के विरोध में ही रहा।

जातिगत गणित में अभय मजबूत पर कांडा भी कम नहीं
विधानसभा क्षेत्र में 68 हजार जाट मतदाता हैं। ऐसे में अभय की पकड़ मजबूत है। उन्हें कोई सीधी टक्कर नहीं िमल रही है। यहां तक कि कांग्रेस के प्रत्याशी पवन बेनीवाल भी जाटों में सेंध लगाने में पिछड़ रहे हैं। पंतालिसी यानी 45 गांवों में शामिल कागदाना,जमाल, बकरीवाला, गुड़िया खेड़ा, रूपावास, तर्कावाली अरणीय और रूपाणा जैसे बड़े गांव इनेलो का गढ़ रहे हैं। हालांकि कुछ फैक्टर हैं जो इस बार इनेलो के जाट बहुल गढ़ में सेंध लगा सकते हैं। सबसे पहले, जजपा के साथ गठबंधन के कारण गोविंद कांडा भी जाट वोट बैंक में हिस्सेदारी पाएंगे। दूसरे, पंतालिसी गांवों में किसान आंदोलन ने मतदाताओं को दो हिस्सों में बांट दिया। एक आंदोलन के पक्ष और दूसरा विपक्ष में खड़ा है। वहीं इससे भी महत्वपूर्ण जाट और गैर-जाट वर्ग में भी वोटर बंट गए हैं। जाट और नॉन जाट का नारा ही अभय चौटाला के लिए भारी पड़ रहा है।

ऐलनाबाद कस्बे में भाजपा को मिल सकती है राहत
ऐलनाबाद कस्बे में ही इनेलो कमजोर है और भाजपा के गोविंद कांडा को यहां बड़ा समर्थन मिल रहा है। क्योंकि यहां जाट वोटरों से ज्यादा व्यापारी वर्ग है, जो कांडा के साथ खड़ा है। यहां सवर्ण, पंजाबी व्यापारी और शहरी वर्ग भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कस्बे में साढ़े तीन हजार की लीड ली थी। ब्राह्मण, राजपूत और बनिया समाज से भी उन्हें अधिकतर वोट मिल सकते हैं। वहीं पंजाबी अरोड़ा खत्री, सैनी समाज, खाती समाज और कांबोज िबरादरी से भी कांडा को समर्थन की बहुत उम्मीद है। पूर्व विधायक कांबोज भी भाजपा के लगातार समर्थन में हैं, जो यहां बड़ा फैक्टर बन कर उभरा है।

सिख और एससी वोट बैंक भी है बड़ा फैक्टर
वहीं 46 हजार शेड्यूल कास्ट वोट बैंक में भी कांडा बड़ी सेंध लगा सकते हैं। क्योंकि हरियाणा में जाट और गैर-जाट का नारा लगने के बाद इस वर्ग के वोटर्स भाजपा की ओर खिसक रहे हैं। हालांकि प्रदेश में ये वर्ग कांग्रेस का पारंपरिक वोटर रहा है, लेकिन यहां पार्टी की कमजोरी स्थिति के कारण ये भाजपा की ओर शिफ्ट होता दिख रहा है। इस वर्ग में कांडा की अपनी भी अच्छी छवि है। किसान आंदोलन के कारण 15 हजार िसख वोटरों में अभय चौटाला बड़ा हिस्सा अपने साथ लाने में कामयाब हो सकते हैं।

इनेलो के लिए चिंतन और चिंता का समय

तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में अभय चौटाला के इस्तीफे के बावजूद ऐलनाबाद उपचुनाव में मतदाता का रिस्पॉन्स उनके पक्ष में कुछ ढीला ही रहा। कारण, शुरू में जिस तरह से माना जा रहा था कि किसान आंदोलन का असर एकतरफा आएगा वैसा कुछ नजर नहीं आया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अभय चौटाला सिर्फ अपना वोट बैंक ही मेंटेन रख लें तो बड़ी बात है। शुरुआत में कमजोर समझे जा रहे भाजपा प्रत्याशी गोविंद कांडा ने मतदान आते-आते अच्छी वापसी की। अभय को बड़ी जीत से रोकने के लिए भाजपा जो यहां करना चाहती थी वह लक्ष्य एक तरह से पूरा होता दिख रहा है। इनेलो के लिए अपने ही गढ़ में बड़ी जीत से वंचित होना उसके लिए चिंता और चिंतन का कारण है।

(नोट : भास्कर ने अपना एग्जिट पोल अपने न्यूज नेटवर्क के रिपोर्टर्स और स्ट्रिंगर्स की मदद से किया है।)

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