आंदोलन की धुरी बने पंजाब के 5 किसान नेता: क्षेत्रीय दायरे को तोड़कर देशव्यापी संघर्ष की बनाई रणनीति, सरकार को हर मोर्चे पर दिया जवाब
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लुधियाना23 मिनट पहलेलेखक: दिलबाग दानिश
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हों या बिहार के CM नितीश कुमार, डिप्टी CM सुशील मोदी, पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व CM बिहार लालू प्रसाद यादव, पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. राम विलास पासवान। इन सभी नेताओं में एक समानता है कि ये सभी नेता किसी न किसी आंदोलन की पैदाइश हैं। चाहे आंदोलन कोई भी हो उसने हर बार किसी न किसी चेहरे को उभारा है। इसी कड़ी में दिल्ली की सीमा पर चला भारत के इतिहास का सबसे बड़ा किसान आंदोलन भी पीछे नहीं है।
किसान आंदोलन की रूपरेखा तब बनी जब केंद्र सरकार 5 जून 2020 को कोरोना काल के दौरान कृषि कानूनों के संबंध में अध्यादेश लेकर आई। पंजाब के किसान संगठनों ने इनका विरोध शुरू किया। अलग-अलग विचारधारा के साथ संघर्ष करने वाले किसान नेताओं ने एक सुर में इन अध्यादेश के खिलाफ आवाज उठाई।
इनमें भारतीय किसान यूनियन (BKU) उग्राहां के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उग्राहां, बलवीर सिंह राजेवाल, अजमेर सिंह लक्खोवाल, हरमीत सिंह कादियां कुछ ऐसे नाम हैं जो क्षेत्रीय दायरे से निकल कर देश में किसानों का चेहरा बन गए।
आंदोलन के दौरान चाहे दूसरे राज्यों के किसानों से संपर्क करने का काम हो या फिर दिल्ली कूच के दौरान रास्ते में बैरिकेड्स और गड्ढों को लांघने की कवायद। कुछ चेहरे ऐसे थे जिनकी प्लानिंग की बदौलत इस आंदोलन को एक विशेष स्वरूप मिला। इन चेहरों की ही मेहनत थी कि एक साल से भी लंबे चले इस ऐतिहासिक आंदोलन में छिटपुट घटनाओं को छोड़ कोई हिंसक झड़प नहीं हुई।
जानते हैं आंदोलन को दिशा देने वाले चेहरों की कहानी, जिन्होंने पूरे मूवमेंट का नेतृत्व करने के साथ संघर्ष को अंजाम तक पहुंचने में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं…
जोगिंदर सिंह उग्राहां : पूर्व सैनिक से किसानों के हमदर्द तक
भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उग्राहां सुनाम में पैदा हुए और फौज में नौकरी की। परिवारिक समस्याओं के कारण फौज छोड़ी और पंजाब आकर खेती-बाड़ी में धंधे से लिप्त हो गए। यहीं से लोगों की समस्याओं के हल के लिए छोटे-छोटे संघर्ष शुरू किए। पहले भारतीय किसान यूनियन से जुड़े और 2002 में भाकियू (उग्राहां) बनाई। अपने संगठन के माध्यम से किसानों के छोटे-छोटे मसलों को लेकर सरकार और प्रशासन से सीधे भिड़े।
जोगिंदर सिंह उग्राहां पंजाब के मालवा और माझा इलाके में ज्यादातर किसान और मजदूर वर्ग इनके संगठन से जुड़े हैं। उग्राहां किसी राजनीतिक दल से सीधे तौर पर नहीं जुड़े हैं, लेकिन कांग्रेस की ओर इनका झुकाव रहा। वह कैप्टन अमरिंदर के ज्यादा करीब माने जाते रहे हैं।
बलबीर राजेवाल : फौज के बाद किसानी की लड़ाई
बलवीर सिंह राजेवाल लुधियाना जिले के खन्ना के पास राजेवाल गांव में पैदा हुए। प्राथमिक स्कूली पढ़ाई के बाद फौज में चले गए। रिटायरमेंट के बाद पंजाब आए और यहां किसानों के चल रहे संघर्ष में रुचि ली। पहले किसान जिंदाबाद यूनियन में काम किया और 1990 के आसपास भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) बनाई। कृषि कानूनों के खिलाफ हुए संघर्ष के दौरान मजबूती से अगुवाई की।
राजेवाल अभी तक किसी भी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़े हैं। इस बात की चर्चाएं रही हैं कि आम आदमी पार्टी ने उन्हें पार्टी जॉइन करने और मुख्यमंत्री के तौर पर चुनाव लड़ने की पेशकश की। उनके अपने एरिया में मुख्यमंत्री बनने के बैनर तक लग गए थे।
डॉ. दर्शन पाल : मोमबत्ती की रोशनी में पढ़कर बने डॉक्टर
पटियाला के गांव रनबीरपुरा के डॉ. दर्शन पाल का बचपन बेहद गरीबी में बीता। मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ाई करके एनसथिसिया में MD की और संगरूर में प्रैक्टिस करने लगे। स्वतंत्रता सेनानी और समाज सेवक जय प्रकाश नारायण मूवमेंट से उनका जुड़ाव संघर्ष से हुआ। इस आंदोलन का असर रहा कि वह डॉक्टर बनने के बाद भी भारतीय किसान यूनियन के साथ सरकार के खिलाफ आवाज उठाने लगे। 2002 में प्रैक्टिस छोड़कर पूरी तरह से किसान संघर्ष में कूद पड़े। डॉ. दर्शनपाल का संगठने बड़ा नहीं है, लेकिन आंदोलन के मुख्य चेहरों में उभरकर सामने आए हैं। वह किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़े हैं।
राजिंदर सिंह दीपसिंह वाला : बचपन से जारी है संघर्ष
पंजाब की नेताओं की खान फरीदकोट के गांव दीप सिंह वाला में जन्मे राजिंदर सिंह दीप वाला ने पहले गरीबी से संघर्ष किया। शहीद भगत सिंह कॉलेज में राजिंदर पंजाब स्टूडेंट यूनियन से जुड़े। वकालत पास राजिंदर ने फरीदकोट में युवती को घर से उठाने मामले में चले लंबे संघर्ष में अहम भूमिका निभाई। मजदूर संघर्ष कमेटी और बाद में किरती किसान यूनियन से जुड़े और कृषि कानूनों के खिलाफ सरकार के हर सवाल का जवाब दिया। राजिंदर किसी भी राजनीतिक पार्टी से जुड़े नहीं हैं और राजनेताओं के खिलाफ छोटी से छोटी बात पर खड़े रहते हैं।
हरमीत कादियां : माझा-मालवा में कृषि कानूनों के लिए संघर्षरत
भारतीय किसान यूनियन कादियां के अध्यक्ष हरमीत सिंह कादियां, माझा और मालवा के कुछ एरिया में कृषि कानूनों को लेकर संघर्षशील रहे हैं। कृषि कानूनों को लेकर विरोध करने की बात शुरू हुई तो वह आगे आए। पिछले साल इन्होंने लाडोवाल टोल प्लाजा पर प्रदर्शन शुरू किया और एक साल से इनका संगठन यहां डटा है। हरमीत मध्यवर्गीय किसान परिवार से हैं। उनका झुकाव किसी भी राजनीतिक पार्टी के साथ सीधे तौर पर नहीं है। हालांकि पर्दे के पीछे रहकर वह कैप्टन अमरिंदर सिंह के संपर्क में रहे हैं।
जगमोहन और पंधेर का भी अहम रोल
भारत-पाकिस्तान की सीमा से सटे फिरोजपुर जिले के गांव करमा के जगमोहन सिंह भारतीय किसान यूनियन डकौंदा से जुड़े हैं। जगमोहन 1984 के सिख विरोधी नरसंहार के बाद पूर्णकालिक सामाजिक कार्यकर्ता बन गए। राज्य में चले विभिन्न प्रदर्शनों में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई। वर्तमान में 30 किसान संगठनों के गठबंधन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले जगमोहन को किसान संघर्ष के प्रति उनकी ईमानदारी के कारण सभी सम्मान से देखते हैं।
अमृतसर जिले के गांव पंधेर के सरवन सिंह पंधेर किसान मजदूर संघर्ष समिति के महासचिव हैं। संगठन का मुख्य आधार माझा, दोआबा के अलावा मालवा के 10 जिलों में है। पंधेर वर्तमान आंदोलन में बड़ी भूमिका में रहे। पंधेर को आगे बढ़ते आंदोलनकारी नेता के रूप में देखा जा रहा है। पढ़ाई में स्नातक पंधेर छात्र जीवन से आंदोलनों में रहे। 42 साल के पंधेर ने समाज सेवा को जीवन समर्पित कर शादी नहीं की।
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