अयोध्या की पहचान है सरयू नदी: श्रीराम की बाल लीला देखने के लिए हुआ अवतार, तट से शुरु होती है अयोध्या तीर्थ की यात्रा
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अयोध्या32 मिनट पहले
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सरयू तट पर अनेक यज्ञों का वर्णन कालिदास ने अपने महाकाव्य में किया है।
11 अगस्त को हरितालिका तीज है। हिंदू धर्म के अनुसार श्रावण या सावन सबसे पवित्र महीना माना जाता है। यह भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रिय महीना भी है। इस महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज मनाई जाती है। चूंकि यह श्रावण मास में पड़ती है, तो इसे श्रावणी तीज भी कहते हैं। यह त्योहार खासकर महिलाओं से जुड़ा है।
अयोध्या की पहचान है सरयू
सावन में जब चारों पर हरियाली रहती है, तो महिलाएं इसका आनंद लेने के लिए झूला झूलती हैं। कई तरह के गीत गाती हैं। इस दिन सरयू घाट पर महिलाएं स्नान करती हैं। उसके बाद पूजा करती हैं। सरयू न केवल अयोध्या की पहचान हैं बल्कि इनके दर्शन और पूजा करने, सरयू के स्पर्श करने नदी में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। आईए जानते हैं कि कौन हैं सरयू और भगवान श्रीराम व अयोध्या से इनका रिश्ता क्या है।
करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र बनी हुई हैं सरयू
वर्तमान में भी सरयू नदी करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र बनी हुई है। प्रत्येक माह की पूर्णिमा,अमावस्या, संक्राति,त्रयोदशी पर्वों के अलावा चैत्र रामनवमी,सावन झूला व कार्तिक मेले के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु नदी में स्नान करते हैं।ऐसी मान्यता है कि सरयू के जल में खड़े होकर या इसके तट पर की जाने वालीतपस्या सफल ही होती है।इस कारण सरयू साधु-संतों व तपस्वियों की पूजनीय बनी हुई हैं।
सरयू का आगमन धरती पर त्रेतायुग में श्रीराम के अवतार के पहलेमान्यता यह है कि भगवान श्रीराम की बाललीला का दर्शन करने के लिए श्री सरयू का आगमनइस धरती पर त्रेतायुग में श्रीराम के अवतार के पहले हुआ था।पुराणों के अनुसार सरयू काअवतार गंगा से भी पहले हुआ।अयोध्या में भगवान का पूजन बिना सरयू जल के नहीं होता है।अयोध्या की यात्रा सरयू दर्शन कर नदी के जल से नागेश्वरनाथ महादेव का अभिषेक करने के बाद ही शुरु होती है।
इस नदी के जल में स्नान का विशेष महत्व
सरयू को बह्मचारिणी बताया गया है। इसी कारण इस नदी के जल में स्नान का विशेष महत्व है।महाभारत के भीष्मपर्व में सरयू का नाम¨का उल्लेख है।रामचरितमानस में सरयू की महिमा का बखानकरते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है अवधपुरी मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिश बह सरयू पावनि।। तुलसीदास जी ने इस चौपाई से सरयू नदी को अयोध्या की प्रमुख पहचान के रूप में प्रस्तुतकिया है।राम की जन्मभूमि अयोध्या से उत्तर दिशा में पावन सलिला सरयू बह रही है।रामायण कालमें सरयू कोसल जनपद की प्रमुख नदी थीं।
पद्मपुराण के उत्तरखंड में भी सरयू नदी का महिमा का वर्णन
पाणिनि ने अपनी पुस्तक अष्टाध्यायी में सरयू का नाम¨का उल्लेख किया है। पद्मपुराण के उत्तरखंड में भी सरयू नदी का महिमा का बखान है। लोकभाषा में कहा जाता है कि सरयू में नित दूध बहत है मूरख जाने पानी। अर्थात पावन सलिला सरयू में निरंतर दूध जैसा लाभदायक अमृत बह रहा है, मूर्ख जिसे पानी समझते हैं।
सरयू मानसरोवर से पहले कड़याली नाम से बहती हैं
वाल्मीकी रामायण तथा अन्य मान्यताओं के अनुसार ब्रह्माजी ने हिमालय पर्वत में बहुत ही सुंदर क्षेत्र में एक सरोवर का निर्माण किया। जिस सरोवर का नाम मानस-सर पड़ा।इस सरोवर से निकली नदी सरयू नाम से लोक प्रसिद्ध हुई। जिसका गोस्वामी तुलसीदास जी ने इनका जिक्र मानस नंदिनी नाम से किया।सरयू मानसरोवर से पहले कड़याली नाम से बहती हैं।फिर इसे घाघरा या घर्घरा के नाम से जाना जाता है।सरयू छपरा ,बिहार के निकट गंगा में मिलती है। गंगा-सरयू संगम पर चिरान नामक पुराना स्थान है।
सरयू में देविका, घाघरा, राप्ती व गण्डक नदियां आकर मिलती हैं
कालिदास ने सरयू, जाह्नवी संगम का तीर्थ बताया है।यहं राजा दशरथ के पिता अज ने वृद्ध होने पर प्राण त्याग दिएथे।कालिदास ने रघुवंश महाकाव्यम पुस्तक में लिखा है कि श्रीराम सरयू को जननी के समान ही पूजनीय कहते हैं। सरयू तट पर अनेक यज्ञों का वर्णन कालिदास ने अपने महाकाव्य में किया है। अध्यात्म रामायण में सरयू महिमा में लिखा गया है कि सरयू में देविका, घाघरा, राप्ती व गण्डक नदियां आकर मिलती हैं। देविका व घाघरा हिमालय की तराई में मिलती है।
वशिष्ठ की पुत्री होने से भगवान राम उन्हें अपनी बहन मानते हैं
अयोध्या से पश्चिम घाघरा व सरयू का संगम होता हैlइस स्थल को वाराह क्षेत्र अथवा सूकर क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। अयोध्या के प्रसिद्ध सरयू मदिर के महंत नेत्रजा प्रसाद मिश्र उर्फ केशव जी ने बताया कि गंगा से पुरानी नदी सरयू है। जब ब्रह्मा जी अपने पिता की खोज कर रहे थे तो उसकी समय भगवान विष्णु प्रगट हो गये तथा उनकी आंख से प्रेम के जोआंसू निकले वही नेत्र से निकलने से नेत्रजा या सरयू नदी कहलायी। सरयू वशिष्ठ की पुत्री होने से भगवान राम उन्हें अपनी बहन मानते हैं जिससे उनका एक नाम वाशिष्ठी भी हैl
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